मातृभूमि के आऊॅ काज| हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश

sachche-swatantrata

मातृभूमि के आऊॅ काज।

मद भरे नयन बिन पिये कभी,
लगता शराब पी लिया आज।1।

तव रूप-सुधा से सराबोर,
सपनों की डोली चले साज।2।

इक बार कहो हॅस कर मुझसे,
है मुझको तुम पर बहुत नाज।3।

कर दिया समर्पित स्वयं तुम्हें,
हाथों में तेरे सुघर लाज।4।

समझाने का वक्त मुझे दो,
मैं भी समझूॅ तेरे काज।5।

मत उदास कर यौवन को तू,
संकेतों के समझो राज।6।

कहने दो क्या लोग कहेंगे,
अपने सिर पर बॉधें ताज।7।

कैसे करूॅ बुराई बोलो,
बिना बुराई गिरती गाज।8।

मातृभूमि को रहूॅ समर्पित,
दिल दीवाने की आवाज।9।

साथ शहीदों की जय बोलो,
मातृ भूमि के आऊॅ काज।10।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश’,
रायबरेली

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