माता वीणा पाणि की,जिस पर कृपा अपार / बाबा कल्पनेश
माता वीणा पाणि की,जिस पर कृपा अपार / बाबा कल्पनेश
माता वीणा पाणि की,जिस पर कृपा अपार।
अपने आँचल छाँव में,रखती उसे दुलार।।
भाव सरोवर में खिले,पुलकित उसका भाल।
नित-प्रति वंदन पद कमल,करता चित्त निहाल।।
क्या चुनना है क्या नहीं,जागृत करे विवेक।
जिससे जीवन का सखे,संभव हो अभिषेक।।
पाँव पंक में हैं सने,ज्यों पंकज का मूल।
मूल लखे से घिन जगे,प्रीति जगे लख फूल।।
पर मराल के चित्त में,केवल नेक विवेक।
माँ के चरणों में सदा,रखे शीश निज टेक।।
जो सुंदरता ताल में,और दबा जो कीच।
सब में एकल माँ कृपा,इसके-उसके बीच।।
सुखद सिद्धि जिससे मिले,माँ की कृपा महान।
धारण करता हंस है,शुभ प्रद वह अवदान।।
माता वीणा पाणि दे,करुणा नीर अथोर।
जीव जगत में प्रकट हो,सुख प्रद जिससे भोर।।
बाबा कल्पनेश