कितनी बार टूटता है | सम्पूर्णानंद मिश्र
कितनी बार टूटता है | सम्पूर्णानंद मिश्र बूढ़ेमां -बाप की रोशनी होती हैंउनकी संतानें पूरी ज़िंदगीअपनी आंखोंकी रोशनी बेचकर संतानों कीख़्वाहिशों के आंगनमें उनके सपनों काजो पूर्ण चांद खिलाता हैवह … Read More
कितनी बार टूटता है | सम्पूर्णानंद मिश्र बूढ़ेमां -बाप की रोशनी होती हैंउनकी संतानें पूरी ज़िंदगीअपनी आंखोंकी रोशनी बेचकर संतानों कीख़्वाहिशों के आंगनमें उनके सपनों काजो पूर्ण चांद खिलाता हैवह … Read More