आह कहो या वाह | दोहा छन्द | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
दोहा छन्द स्नेह लुटाते फिर रहे,निज की नहिं परवाह,मानवता कहती यही,आह कहो या वाह।1। जीवन शैली मिट रही,ढूँढें नये रिवाज,अधुनातन की दौड़ में,गिरवी रखते लाज।2। फैशन के इस दौर में,धर्म-शर्म … Read More