सपनों में मॉ तुम ही तुम हो /हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’

सपनों में मॉ तुम ही तुम हो। धक-धक चलती सॉस मेरी तुम,रोम-रोम में तुम ही तुम हो,अधरों की मुसकान तुम्हीं से-सपनों में मॉ तुम ही तुम हो।टेक। तुमसे जीवन-जगत बना … Read More

प्यारी मां / दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’

प्यारी मां पल-पल याद तुम्हारी आए,मेरी प्यारी-प्यारी मां।तुझको भुलाऊं भूल ना पाऊं,मेरी प्यारी-प्यारी मां।भूख लगे जब दौड़ के आती,दूध-भात भी साथ में लाती।अपनी गोदी में बैठाकर,अपनें हाथों मुझे खिलाती।जब भी … Read More

मां बहुत याद आती हो / संपूर्णानंद मिश्र

मां बहुत याद आती हो! दुनिया की नज़रों से छुपाती थीमुझे अपने सीने से लगाती थीतुम्हारे दूध का कोई मोल नहींमां तेरी ममता का कोई तोल नहींगीले में सोकर सुखे … Read More

मांँ केवल इक शब्द नहीं / राजेन्द्र वर्मा राज

मांँ केवल इक शब्द नहीं, वह शब्दकोश से ज़्यादा है।अंतर्मन से महसूस करो वह अंतर्-बोध से ज़्यादा है।।वह प्यार भरा स्पर्श उसका करता है तन की थकन दूर।वह ममतामयी डपट … Read More

बुद्ध बनना आसान नहीं है / सम्पूर्णानंद मिश्र

बुद्ध बनना आसान नहीं है! ( बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर) गालियों को गलानेईर्ष्या को जलानेअहंकार का विष पीनेमान-अपमान में समभाव जीनेका जब अभ्यास हो जायतो व्यक्ति बुद्ध बनता हैयह … Read More

मॉ गीत विरद तव गाऊॅ | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश

मॉ गीत विरद तव गाऊॅ | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश पदरज आज सजा मेरे माथे,मॉ गीत विरद तव गाऊॅ,ऋषि-मुनियों ने ध्यान लगाया,मॉ मैं भी तुझको ध्याऊॅ।टेक। कृपा मिले तो भव सागर से,पार … Read More

सर्वहारा | सम्पूर्णानंद मिश्र

सर्वहारा | सम्पूर्णानंद मिश्र हां मैं सर्वहारा हूंलेकिन हारा नहीं हूंथका नहीं हूंरुका नहीं हूंझुका नहीं हूंटूटा नहीं हूंकर्म में जुटा हूंईमान- पथ परअविचलित होते हुएनिरंतर अथक चलता ‌रहता हूंरुकना … Read More

धरती पुत्र | हिंदी कविता | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

धरती पुत्र | हिंदी कविता | पुष्पा श्रीवास्तव शैली धरती पुत्र सर पर बांधे गमछे से पसीनासुखाते हुए कभी धरती पुत्र कोदेखा है?देखा है कभी उन पांवों को जोतपती धूप … Read More

हमें भी | लघुकथा | रत्ना सिंह

हमें भी | लघुकथा | रत्ना सिंह उसके कपड़े बेहद मटमैले और गंदे थे । बस की चलती तेज रफ्तार में हवा का झोंका खिड़की से अंदर आ रहा था। … Read More

व्यथित मन | पुष्पा श्रीवास्तव शैली | हिंदी कविता

व्यथित मन | पुष्पा श्रीवास्तव शैली | हिंदी कविता व्यथित हूंकुछ सीवन सी टूटती जा रही।या कुछ सीलन के प्लास्टरजैसा झड़ता ही जा रहाकभी भी खतम न होने वाला। आज … Read More