वसुधैव कुटुंबकम् / हूबनाथ

वसुधैव कुटुंबकम् / हूबनाथ हमारी बस्तियाँभले पक्की हो गई हैं घरों में बन गएशौचालयतुम्हारे घरों की तरह हमारे कपड़ेतुम्हारी तरह साफ़सुथरे हो गए हमें भी मिलने लगीदो वक़्त की रोटीभरपेट … Read More

पॉव भटक न जायें सुन तू / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश’

पॉव भटक न जायें सुन तू / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश’ कॉटों भरी डगर जीवन की,जिस पर तुझको चलना है,पॉव भटक न जायें सुन तू,प्यारी मेरी ललना है। टेक। तुझे पता … Read More

मुद्दतें हो गईं मुस्कराए हुए / राजेंद्र वर्मा ‘राज’

मुद्दतें हो गईं मुस्कराए हुए / राजेंद्र वर्मा ‘राज’ कितने बादल उदासी के छाए हुए।मुद्दतें हो गईं मुस्कराए हुए।। अब मैं अपना किसी को भी कहता नहीं।जिनको अपना कहा सब … Read More

तुम्हारी तोतली बोली / पुष्पा श्रीवास्तव शैली

तुम्हारी तोतली बोली / पुष्पा श्रीवास्तव शैली तुम्हारी तोतली बोलीजब धीरे धीरे बदलने लगीसाफ आवाज में ,तब भी मैं डरी।तुम्हारे नन्हे कदम जबबिना मेरे सधने लगेतब भी मैं डरी।तुम्हारी आंखों … Read More

इक बार पुकारा होता / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

सजल इक बार पुकारा होता भूले से सही प्यार से,इक बार पुकारा होता,शबनमीं होंठों पे सनम, अधिकार तुम्हारा होता।1। ख्वाबों में ही देखी , वह मुहब्बत तेरी,ख्वाब सजते जो गजब, … Read More

अनंग पाल सिंह भदौरिया’अनंग’ के अध्यात्मिक मुक्तक

अनंग पाल सिंह भदौरिया’अनंग’ के अध्यात्मिक मुक्तक ( 1 ) अंतरातमा में अगर , जम जाएं आदर्श ।देव मार्ग पर आदमी, खुद चल देय सहर्ष ।।खुद चल देय सहर्ष, न … Read More

हल्का हल्का सुरूर है साक़ी / नरेंद्र सिंह बघेल

हल्का हल्का सुरूर है साक़ी / नरेंद्र सिंह बघेल ( तरन्नुम से गुनगुनाने को} हल्का हल्का सुरूर है साक़ी ।कोई चाहत जरूर है साक़ी ।।हल्का हल्का ———बिन पिए खुद-ब -खुद … Read More

मैं सहज ,शाश्वत युग ध्वनि हूं / श्रवण कुमार पान्डेय,पथिक

गुन्जन अक्षुष्ण जिसका सर्वथा,मैं सहज ,शाश्वत युग ध्वनि हूं,! प्रवाह,पावन पवन का ,मुझमें समाया,कृति समर्थ,रविदाह ने मुझको तपाया,मुझमें समाहित,नीरवत निर्मल तरलता,मुझको सुलभ है व्योमवत ,इक क्षत्रता, जिससे सरस जीव जीवन,सुहृद … Read More

परख / सम्पूर्णानन्द मिश्र

परख किस पायदानपर खड़े हैंमूल्यांकन हो इसकाक्योंकि फूलों कापायदानपहुंचा तो सकता है शीर्ष परलेकिन टिका नहीं सकतादेर तक हमें वहांहो सकता हैख़तरनाकएवं जानलेवाजिस पायदान परमुसीबतों का शूल होरखो धीरे- धीरे … Read More

कौन हवाओं से पूछेगा / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश

सजलकौन हवाओं से पूछेगा, पल-पल प्रियवर याद तुम्हारी,तड़पा जाती है,गुलशन के हर गुल-ओ-खार को,महका जाती है।1। राख हुए जंगल सी बस,अपनी राम-कहानी,दो पल रुककर पागल मन को,समझा जाती है।2। तन्हॉ … Read More

विमुख / सम्पूर्णानंद मिश्र

विमुख / सम्पूर्णानंद मिश्र सत्य से विमुख व्यक्तिफोटो की तरफ़ भागता हैक्योंकिभीतर अपने अमा लेता हैफोटोपेट के पाप कोऔरनिष्पाप चेहरादिखाता है समाज कोवैसे आजकलएक चेहरे सेजीवन जीनापानी पर लकीरें खींचना … Read More

जब जागता श्री संत हो | मधुमालती छंद | बाबा कल्पनेश

जब जागता श्री संत हो विषय-जब जागता श्री संत हो छंद-मधुमालती अब रात की वेला मुई।यह प्रात की वेला हुई।भरती महक है घ्राण में।संचार शुभ है प्राण में।। अब जागिए … Read More

विवशता /सम्पूर्णानंद मिश्र

विवशता संवादके लिए माध्यमबहुत जरूरी होता हैलेकिनजब माध्यम हीपक्षपात के ऐनक सेघटनाओं कोदेखने- सुनने और अभिव्यक्तकरने लगेतोनहीं कोई रोक सकता हैलाक्षागृह मेंआग लगने सेइसलिएझूठ और कपट के शोर मेंयदि सत्य … Read More