जीवन धारा | पुष्पा श्रीवास्तव शैली
जीवन धारा निश्छल नदिया जैसी बहती रहती जीवन धारा,सबमें स्वयं समाहित होकर भर लाती उजियारा। कभी राह में कंकड़ पत्थर,कभी सुकोमल धरती।कभी जेठ की दोपहरी,और कभी साॅंझ सुंदर सी। बचपन … Read More
जीवन धारा निश्छल नदिया जैसी बहती रहती जीवन धारा,सबमें स्वयं समाहित होकर भर लाती उजियारा। कभी राह में कंकड़ पत्थर,कभी सुकोमल धरती।कभी जेठ की दोपहरी,और कभी साॅंझ सुंदर सी। बचपन … Read More
पिता का स्वर / सम्पूर्णानंद मिश्र आज सुनामैंने स्वर पिता काबिल्कुल भोर मेंकह रहे थे बेटाघर की याद आती हैवैसे अच्छा हैयहां अनाथाश्रम में भीवहां 40/45 के मकान मेंमेरा विस्तार … Read More
पिता की नसीहत / सम्पूर्णानंद मिश्र पिता ने पुत्र कोनसीहत देते हुएकहा कि बेटाजिंदगी में पानी की तरहमत बहनासपाट जीवन मत जीनारुकावटें आएंगीतुम्हें विचलित करजायेंगीतोड़ने का प्रयास किया जायेगाटूटना मतबिकना … Read More
कुटुम्ब विनाशिनी / वेदिका श्रीवास्तव लाज का झूठा घूँघट ओढ़े सम्मान उछाले नारी का ही ,कर्तव्य ,त्याग की दे दुहाई चैन ये छीने बेचारी का ,क्षण -क्षण निन्दा ,पग -पग … Read More
प्रदर्शन / सम्पूर्णानंद मिश्र और तौर-तरीके हैंप्रदर्शन केआगज़नी, तोड़फोड़, लूटपाटहल नहीं हैबहुत बड़ा अपराध हैक्षतिग्रस्त करनाइस तरह से देश कोलहू पीकर भाइयोंका अपने हीकभी नहीं प्रसन्न रह सकतेसमृद्धि की यह … Read More
बेटियां न हो बेटियांतो नहीं आती हैं घर में खुशियांपिता की मान होती हैं ये बेटियांमां की शान होती हैं ये बेटियांबिन बेटियों के घर डराता हैज़िंदगी भर माता-पिता को … Read More
रोटी विधा-कुंडलिया रोटी होती श्वेत है,गोल चकत्तेदार।हो गरीब या धनी ही,भर देती मुख लार।भर देती मुख लार,अधर तक छलके पानी।संत-असज्जन-चोर,वणिक-ज्ञानी-अज्ञानी।।मति विवेक दो टूक,करे अतिशय यह खोटी।जागे जिस क्षण भूख,बने मृगजल … Read More
दुल्हन है ऋंगार सृष्टि की,स्नेहिल जीवन का आधार,छुई-मुई सी कलिका पावन,उर नेह-तरंगित पारावार ।1। दृग-दीवट के दीप जलाये,सपनों का अम्बार सजाये ,सुधि-बुध में ही खोई रहती,तरुण वेदना किसे बताये।2। घूॅघट … Read More
ईर्ष्यान केवलजलाती हैतन और मनबल्किजला देती हैसकारात्मक सोच कीलकीर भीईर्ष्या की रखैलअंध- भक्तिन सेजन्म लेता हैएक विशेष जीवजो नफ़रत, उन्मादऔर देशद्रोह का खाद पाकर नयारंग- रूप पाता हैजिसके कर्म की … Read More