हितकारी हर बुद्धि विमल हो | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

हितकारी हर बुद्धि विमल हो। गिरजाघर,गुरुद्वारा जाकर,मन्दिर,मस्जिद दौड़ लगाकर,मन को शान्ति नहीं मिल पाई,चौखट-चौखट दीप जलाकर । टेक। सतरंगी परिधान रुपहले,सपनों के वे महल-दुमहले,तेरी सुधि की अमराई में,भटके कदम चले … Read More

समसामयिक रचना | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ | माटी वाले घर

1 . जल रही धरा,रो रहा गगन अब ऐसा कुछ कर दो प्रभुवर,प्रसरित हो सुख-शान्ति धरा पर।1। अहम्-वहम् सब दोष मिटा दो,नित जन-जन पर हो करुण-नजर।2। जल रही धरा रो … Read More

दुविधा / डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

दुविधा अथाह बलकिस काम काजिसकी खुली आंखेंधर्म की ध्वजा फटतेदेखती रहींरक्षार्थ चीखती रहीएक स्त्री की आत्मातब वह विवशता का मनहूसगीत गाता रहाशोभित होता हैऐसा पुरुषार्थ सिर्फ़ और सिर्फ़ दर्पण मेंशरशैय्या … Read More

तपिश की अनुभूतियों के कुछ दोहे : नरेंद्र सिंह बघेल

तपिश की अनुभूतियों के कुछ दोहे : नरेंद्र सिंह बघेल सूरज की ऐसी तपिश,देखी पहली बार ।भुवन भाष्कर क्रोध में,करते यह व्यवहार ।।1।। प्रकृति के इस तंत्र को,हमने दिया निचोड़ … Read More

शंखनाद | हत्यारा | हूबनाथ

शंखनाद पूर्णसत्य तोयुधिष्ठिर भी नहीं चाहते थेजिन्हें माना जाता थासत्यनिष्ठ वे राज़ी थेसुविधाजनक सत्य पर सत्यसुविधाजनक होतो आसानी सेबदला जा सकता हैअसत्य से सत्यछिपाया जा सकता हैशंख बजाकरघड़ियालनगाड़े बजाकर उसके … Read More

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’, का रचना संसार

१. राष्ट्र वाद के शंखनाद से,नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है।××××××××××××××××××× राष्ट्र वाद के शंखनाद से,नव वर्ष तुम्हारा स्वागत हो,धर्म-कर्म सद्भाव सुसज्जित,अनुपल जीवन आगत हो।टेक। कण-कण में उल्लास छलकता,वन,उपवन हर गॉव … Read More

नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन!

नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन! नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!माथे पर मलयागिर चंदन।। यह प्रात सजाए थाल खड़ी।तुम आए लेकर सुखद घड़ी।।शिशु भारत करता पद वंदन।नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन।। स्वागत में प्राची … Read More

लोकतंत्र में वंशगत प्रचलन रहेगा / Shravan Kumar Pandey Pathik

जब तक लोकतंत्र में वंशगत प्रचलन रहेगा,लोकतंत्र अपने स्थापित उद्देश्य से दूर रहेगा, हम भारतीयों में ,,,व्यक्ति पूजा का मानसिक दोष काफी गहरे प्रविष्ट हो चुका है, भारतीय व्यक्ति अपने … Read More

क्या बना दिया / विलक्षण उपाध्याय (भारमल गर्ग)

क्या बना दिया ? देख रहे हो ऐसे यह तुमको नहीं ख़बरयह आद’मी था कभी धुआं बन गया ।। जिस मांझी ने हमको बताया तू है कहां ?उस मांझी ने … Read More

दर्द छलक उठा / डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

दर्द छलक उठा धर्म जबमज़हबी ऐनक लगा लेता हैकुछ भी नहीं दिखाई पड़ता है तब उसेपार्थक्य नहीं कर पाता हैसही और ग़लत कावह और भी हिंसक हो जाता हैवैसे भी … Read More

लाज की ओढ़नी फिर पड़ी बांधनी | पुष्पा”शैली”

लाज की ओढ़नी फिर पड़ी बांधनी | पुष्पा”शैली” दीप जगमग हुआ,प्रीति ने मन छुआ।गागरी भर उतरने लगी चांदनी।मन से मन जब मिला, तम लजाकर गिरा।लाज की ओढ़नी फिर पड़ी बांधनी। … Read More