हितकारी हर बुद्धि विमल हो | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
हितकारी हर बुद्धि विमल हो। गिरजाघर,गुरुद्वारा जाकर,मन्दिर,मस्जिद दौड़ लगाकर,मन को शान्ति नहीं मिल पाई,चौखट-चौखट दीप जलाकर । टेक। सतरंगी परिधान रुपहले,सपनों के वे महल-दुमहले,तेरी सुधि की अमराई में,भटके कदम चले … Read More