आज से करीब( 55_60) वर्ष पहले की बाल स्मृतियों में संचित ग्रामीण परिवेश में कृषि कार्य से संबंधित अपने घर के कुछ दृष्टि बिंबों को समेटने सहेजने का प्रयास रचना में किया गया है (algozabaghelikavita)वस्तुतः यह यथा स्थिति का कल्पनाओं और व्यंजनाओं से अलग वस्तुस्थिति का यथार्थ चित्रण है ।रचना में उल्लेखित भूमि पुत्रों के नाम यथावत ” में दर्शाए गए हैं। यह रचना व्याकरण की भाषा में त्रुटियों से भरी है परंतु इसका भाव प्रवाह ही रचना का मूल स्रोत है कृपया मेरा यह लंबा वक्तव्य एवं रचना श्रेष्ठजनों, गुणीजनों, विद्वतजनों के समक्ष क्षमा के साथ सादर प्रस्तुत है । विशेष —–रचना में “अलगोजा”वाद्य यंत्र का उल्लेख किया गया है यह एक ऐसा वाद्य यंत्र है जो दो बांसुरियों को दोनों हाथों में अलग-अलग पकड़ कर इसे मुंह में एक साथ फंसा कर एक ही फूंक से बिना रुके एक साथ दो सुरों में बजाया जाता है । शायद दुर्लभ और अद्भुत वाद्य यंत्र जो आज भी राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में लोक संस्कृति के रूप में विद्यमान है । अद्भुत कला एवं अद्भुत कलाकार हमारे घर में काम करने वाले धरतीपुत्र स्वर्गीय चिन्ना बाबा को और उनकी लोक संगीत की कला को नमन। प्रस्तुत है रचना——- चिन्ना बाबा का अलगोजा हर किसान के हर हैं कितने, उसका रुतबा बतलाते । और समाज के बीच में उसको, ऊंचा ओहदा दिलवाते ।। सात हरन क आपन घर, होत रहा किसान । गोइंडहरे के लोग सबै जन, देत रहे सम्मान ।। “सुरजा” “गिल्ला” “रम्मा” “चिन्ना” अउर “गैबिया ” काका । खेत जोतते टप्पा गाते, बजते ढोल-ढमाका ।। “चिन्ना ” बब्बा” का अलगोजा, देवी पूजन में बजता । और कजलियां होरी के दिन, महफिल में भी सजता ।। “नाते ” “व्यकंट” भोर सुबह उठ, पहट चराने जाते । … Read More