मुक्तक होली पर | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

मुक्तक–होली पर छल-छद्म-द्वेष-पाखण्ड त्याग,निर्मल उर कर,मधुरस बोली,स्नेह-दया-ममता का तिरंगा,रंग-उमंगित वीर की टोली।वन्दनीय शुचि पर्व होलिका,चर-अचर जगत आनन्दित हो-,धन्य थरा भारत की अपनी,आओ मिल-जुल खेलें होली। होली की अशेष स्नेहिल कामनाओं … Read More

होली पर मुक्तक |राजेन्द्र वर्मा ‘राज’

प्रेम रंगों का अद्भुत ये त्योहार है,है खुशी हर जगह दिल में भी प्यार है।सारे रंगों की मानिंद मिलकर रहें ,सीख देने को आया ये त्यौहार है।। – राजेन्द्र वर्मा … Read More

होली गीत : लाल हरा रंग नीला पीला,लेकर आई होली |दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’

होली गीत लाल हरा रंग नीला पीला,लेकर आई होली।होली गीत सुनाती आई,फगुहारों की टोली।ढोल,मंजीरा,झांझ लिए,सब होली गीत सुनावें।सुंदर-सुंदर गीत सभी के,मन को खूब लुभावें।सब के सब मस्ती में डूबे,छाने भांग … Read More

ऑचल बहॅक रहा | नींद नयन ना आई | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

माहिया/टप्पा छन्द1.ऑचल बहॅक रहा देखो आग लगी है,चहुॅदिशि पवन बहे,कोंपल मुकुल जगी है।1। पवन बहे सुखदाई,ऑचल बहॅक रहा,नयन रहे अकुलाई।2। नव विकास की राहें,नित त्याग मॉगतीं,खुशी भरी हों बॉहें।3। तुमको … Read More

बूढ़े बाबा | सम्पूर्णानंद मिश्र

बूढ़े बाबा नहीं हूं वहां मैंजहां ढूंढ़ा जा रहा है मुझे था कभी वहां मैंउस दालान मेंबूढ़े बाबा के पासजहां इंसान पनही से नहींअपने आचरण से जोखा जाता था जहां … Read More

पीर  तन्हा  है  और  जवां तन्हा | आर.सी. वर्मा ‘साहिल’

पीर  तन्हा  है  और  जवां तन्हा | आर.सी. वर्मा ‘साहिल’ पीर  तन्हा  है  और  जवां तन्हाहर  बशर  तन्हा, है  जहां तन्हा गोद  में   चाँद   तारे    हैं   चाहेफिर भी लगता है … Read More

एक बासंती गीत | फिर से बसंत आया | नरेन्द्र सिंह बघेल

है ज़र्द -ज़र्द मौसम ,और मौसमी हवाएं ।इस प्यार के सफर में ,हम तेरे गीत गाएं ।।फिर से बसंत आया ,सूनी है अमराई ।तुम बिन गुजर गयी शब ,फिर याद … Read More

माँ शारदे वर दे | प्रतिभा इन्दु

शारदे वर दे मुझेमाँ शारदे वर दे ! है गहन पसरा अंधेरा ,दूर है अबतक सवेरा ,हो गई खुशियाँ तिरोहितपास है मातम घनेरा ।ज्ञान की उज्ज्वल किरण सेअर्श प्रखर भर … Read More

आवाहन गीत | एक बार फिर आओ राम | राजेन्द्र वर्मा’ राज ‘

आवाहन गीतएक बार फिर आओ रामकनक भवन सूना लगता है सूनी गलियाँ चौबारे।सूनी है जानकी रसोई, गुमसुम हैं ड्योढ़ी- द्वारे।।पशु – पक्षी सब टेर रहे हैं, व्याकुल हैं सब नर … Read More

सभ्यता की कमीज़ | सम्पूर्णानन्द मिश्र की नई कविताएँ

सभ्यता की कमीज़ | सम्पूर्णानन्द मिश्र की नई कविताएँ नहीं लगता मुझेतुम एक मुक्कमल आदमी हो! क्योंकिसभ्यता की तुम्हारी कमीज़राजधानी की खूंटियों परअब भी टंगी हुई है तुम्हारे विवेक का … Read More

एक गीत सपन का | फिर कहो कि मुझसे प्यार नहीं !! नरेंद्र सिंह बघेल

एक गीत सपन का | फिर कहो कि मुझसे प्यार नहीं !! नरेंद्र सिंह बघेल 1 .एक गीत सपन का ये शाम है धुआं धुआं ,कि गुम सा कोई ख्वाब … Read More

इल्ज़ाम | ग़ज़ल | राजेन्द्र वर्मा “राज”

यूँ बेवज़ह इल्ज़ाम लगाने के बाद भी ।वो खुश नही है मुझको रूलाने के बाद भी ।। रहते नहीं हैं याद कई लोग मिल के भी । कूछ भूलते नही … Read More

चाँद | नरेंद्र सिंह बघेल | हिंदी कविता

पूनम की थी रात सुहानी ,मेरी गली में आया चाँद ।धीरे-धीरे चुपके-चुपके ,मेरी गली मुसकाया चाँद ।सुंन्दर झील के ठहरे जल पर ,धीरे से लहराया चाँद ।उतर के अपने नील … Read More

कमरे की आवाज़ | सम्पूर्णानंद मिश्र

कमरे की आवाज़ | सम्पूर्णानंद मिश्र संदेश देती हैघड़ीवक्त की धारा में डुबकी लगाओ संदेश देता है पंखादिमाग ठंडा रखो न बहाओ क्रोध का पसीना अनावश्यक छत कहता हैबड़ा सोचो … Read More

अपने हिस्से का आकाश |सम्पूर्णानंद मिश्र

अपने हिस्से का आकाश ढोता हूं पूरी शिद्दत सेअपने हिस्से का आकाशताकिझरबेरी का पेड़उग सके मेरे आंगन में औरजिसका फलदे सके थोड़ी सी मुस्कान मेरे ओठों परताकि अब मुझे गिरवी … Read More