नगरवधू | सम्पूर्णानंद मिश्र
नगरवधू आम्रपालीतुम बहुत सुंदर थीयही तुम्हारा कसूर थाइसलिएतुम्हारे सौंदर्य का पान करने के लिएवैशाली और मगध निरंतर लड़ते रहेएक बार नहींसौ बार फाड़ी गई मर्यादा की चादरपिता- पुत्र के द्वाराप्रतिद्वंद्वी … Read More
नगरवधू आम्रपालीतुम बहुत सुंदर थीयही तुम्हारा कसूर थाइसलिएतुम्हारे सौंदर्य का पान करने के लिएवैशाली और मगध निरंतर लड़ते रहेएक बार नहींसौ बार फाड़ी गई मर्यादा की चादरपिता- पुत्र के द्वाराप्रतिद्वंद्वी … Read More
परीक्षा पर व्यंग्यात्मक कविता | Poem on Exam in Hindi – परीक्षा पर कविता परीक्षा बोर्ड परीक्षा मेंएक परीक्षार्थी नकलकरते हुए पकड़ा गया बहुत रोया चिल्लायाअपने तर्क सेजिला विद्यालय निरीक्षकसे … Read More
नसीहत | सम्पूर्णानंद मिश्र | हिंदी कविता पिता ने पुत्र कोनसीहत देते हुएकहा कि बेटाजिंदगी में पानी की तरहमत बहनासपाट जीवन मत जीनारुकावटें आएंगीतुम्हें विचलित करजायेंगीतोड़ने का प्रयास किया जायेगाटूटना … Read More
सारे पथ जब बंद न्याय का | प्रतिभा इन्दु सारे पथ जब बंद न्याय कारण अभिशाप नहीं है ,यहां रक्त की नदियां बहतीकोरा जाप नहीं है ,मत भूलो तुम नियत … Read More
आदमी | सम्पूर्णानंद मिश्र आदमी आज बेचारा हैपरिस्थितियों का मारा हैमहंगाई से तंग हैसिस्टम से मोहभंग हैस्वयं से जंग हैअब जिंदगी में न हीकोई रंग हैन अपने अब संग हैरोज़ … Read More
रक्तचाप | सम्पूर्णानंद मिश्र भूखका बढ़ता रक्तचापसिर्फ़शरीर के अवयव को हीनहीं नुकसान पहुंचाता हैबल्कि क्षतिग्रस्त करता हैआत्मा को भीहालांकिमुहर लगाई हैशास्त्र नेआत्मा की अमरता परलेकिनभूख की तीव्र लपटचमचमातीमहंगी गाड़ियों तक … Read More
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सत्तावनवीं क्रांति में भारत के असंख्य वीरों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोहा लिया। उनमें राणा बेनी माधव सिंह का नाम प्रमुख है। जिन्होंने देश की … Read More
लघुकथा | विरोध | रश्मि लहर | Short Story in Hindi “अम्मा जी! ननदोई जी के साथ हम होली नहीं खेलेंगे, उनके ढंग ठीक नहीं हैं।वो होली के बहाने इधर–उधर … Read More
मिलो इस बार फागुन में | रश्मि लहर खिला टेसू धरा महकी मिलो इस बार फागुन में।मिलन-सुधि भी मिली बहकी, मिलो इस बार फागुन में।। हुए शाखों के रक्तिम से,कपोलों … Read More
संग हम साथ होंगे | सम्पूर्णानंद मिश्र क्योंभाग रहे होहाथ मेरा छुड़ा रहे होमैं लेने जब आऊंगीलेकर ही जाऊंगीफिर भी भाग रहे होबाहें मेरी छुड़ा रहे होकत्ल भी करते होइल्ज़ाम … Read More
आज से करीब( 55_60) वर्ष पहले की बाल स्मृतियों में संचित ग्रामीण परिवेश में कृषि कार्य से संबंधित अपने घर के कुछ दृष्टि बिंबों को समेटने सहेजने का प्रयास रचना में किया गया है (algozabaghelikavita)वस्तुतः यह यथा स्थिति का कल्पनाओं और व्यंजनाओं से अलग वस्तुस्थिति का यथार्थ चित्रण है ।रचना में उल्लेखित भूमि पुत्रों के नाम यथावत ” में दर्शाए गए हैं। यह रचना व्याकरण की भाषा में त्रुटियों से भरी है परंतु इसका भाव प्रवाह ही रचना का मूल स्रोत है कृपया मेरा यह लंबा वक्तव्य एवं रचना श्रेष्ठजनों, गुणीजनों, विद्वतजनों के समक्ष क्षमा के साथ सादर प्रस्तुत है । विशेष —–रचना में “अलगोजा”वाद्य यंत्र का उल्लेख किया गया है यह एक ऐसा वाद्य यंत्र है जो दो बांसुरियों को दोनों हाथों में अलग-अलग पकड़ कर इसे मुंह में एक साथ फंसा कर एक ही फूंक से बिना रुके एक साथ दो सुरों में बजाया जाता है । शायद दुर्लभ और अद्भुत वाद्य यंत्र जो आज भी राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में लोक संस्कृति के रूप में विद्यमान है । अद्भुत कला एवं अद्भुत कलाकार हमारे घर में काम करने वाले धरतीपुत्र स्वर्गीय चिन्ना बाबा को और उनकी लोक संगीत की कला को नमन। प्रस्तुत है रचना——- चिन्ना बाबा का अलगोजा हर किसान के हर हैं कितने, उसका रुतबा बतलाते । और समाज के बीच में उसको, ऊंचा ओहदा दिलवाते ।। सात हरन क आपन घर, होत रहा किसान । गोइंडहरे के लोग सबै जन, देत रहे सम्मान ।। “सुरजा” “गिल्ला” “रम्मा” “चिन्ना” अउर “गैबिया ” काका । खेत जोतते टप्पा गाते, बजते ढोल-ढमाका ।। “चिन्ना ” बब्बा” का अलगोजा, देवी पूजन में बजता । और कजलियां होरी के दिन, महफिल में भी सजता ।। “नाते ” “व्यकंट” भोर सुबह उठ, पहट चराने जाते । … Read More
प्रसंग वश चल रहे वार्तालाप से उपजे ग्रामीण परिवेश के कुछ बघेली में अषाढ़ी दोहे। प्रथम प्रयास। विनम्रता के साथ गलतियां क्षमा करेंगे। बघेली में अषाढ़ी दोहे/नरेंद्र सिंह बघेल १) … Read More
बहुत कुछ बिदा सा हो जाता माँ बाप का | श्रवण कुमार पाण्डेय पथिक बहुत कुछ बिदा सा हो जाता माँ बाप का,जिसदिन घर से ,बिदा हो जाती हैं बेटियां, … Read More
मोहब्बत हो गई जबसे | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ मोहब्बत की राहों पर, ,कभी नाराज न होना ,इसे तुम सरजमीं कहना,यही है जिन्दगी अपनी,यही है बन्दगी अपनी।1। बहारों ने कदम चूमा,गुलिस्तॉ … Read More
ज़हरीले शब्द | सम्पूर्णानंद मिश्र आंखों में पल रहीक्रोध की चिंगारीजब ज़हरीले शब्द बनकरनसों में घुलती हैंतब व्यक्ति कीभाषा तेज़ाब से भी ज़्यादाज्वलनशील हो जाती हैऔर तबसाफ़- साफ़ख़तरा दिखने लगता … Read More