चरणों में यह जीवन है | जय शिव शंकर जय अविनाशी | कोई नहीं है अपना | ऋतु सावन की आई है | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

गुरु-पूर्णिमा के पावन अवसर पर पूज्य गुरुदेव को समर्पित एक गीत– शीर्षक:-चरणों में यह जीवन है। रोम-रोम में नाम तुम्हारा,सुधियों में छवि तेरी है,अनुप्राणित यह जीवन तुमसे,तुमसे दुनिया मेरी है। … Read More

जीवन ही प्रेम | मन से मन का मान रख | कैसे खेली हम आज कजरिया | सावन की घटा

1 .जीवन ही प्रेम है। मुहब्बत हर कण,हर क्षण में होता है,कोई खोकर पाता,कोई पाकर खोता है।पशु-पक्षी पेड़-पौधे,सबमें प्रकृति-प्रेम है,नजर तो जरा घुमाओ,सूक्ष्मता में भी स्नेह पाओ।सावन का प्रेमी है … Read More

कसूर | सम्पूर्णानंद मिश्र | हिंदी कविता

वे मासूम थेहांबिल्कुल मासूम थे कसूर क्या था उनकाबस इतना किनहीं खेल रहे थेकिसी खिलौनों से नहीं झूल रहे थे पार्क केकिसी झूले में बालपुस्तिकाभी नहीं थी हाथ में न … Read More

हर घड़ी याद आती रही है तेरी | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ | हिंदी कविताएं

हर घड़ी याद आती रही है तेरी कट गई जिन्दगी बस-सफर में मेरी,हर घड़ी याद आती रही है तेरी।1। बागबॉ बन हिफाजत मैं करता रहा,हर कली में थी खुशबू समाई … Read More

वरिष्ठ साहित्यकार हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’ का रचना संसार

शीर्षक:- परिभाषा लिखता हूॅ सम्बन्धों के धूप-छॉव की,परिभाषा लिखता हूॅ,टूटे दर्पण की पीड़ा-अभिलाषा लिखता हूॅ।टेक। मस्त नाचते मोर-मोरनी,जंगल की हरियाली में,चातक,दादुर खूब थिरकते,घिरी घटा मतवाली में।कोंपल कलिका व्यथित विरहिणी ,की … Read More

आह कहो या वाह | दोहा छन्द | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

दोहा छन्द स्नेह लुटाते फिर रहे,निज की नहिं परवाह,मानवता कहती यही,आह कहो या वाह।1। जीवन शैली मिट रही,ढूँढें नये रिवाज,अधुनातन की दौड़ में,गिरवी रखते लाज।2। फैशन के इस दौर में,धर्म-शर्म … Read More

कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा | इन्द्रेश भदौरिया | Awadhi Poetry

विश्व पर्यावरण दिवस पर – कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा। घर के भराँव छपरा छानी हेराने,नहीं रहिं ग़इं अंगऩइया कटैं बिरवा।कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा। जंगल काटि-काटि म़उजै मारत,सूखि परे … Read More

आ जा रे गौरैया सुन ले |हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

आ जा रे गौरैया सुन ले। आ जा रे गौरैया सुन ले,तुझको पास बुलाऊॅ।बैठ हथेली में तू मेरे,दाना तुझे खिलाऊॅ।1। दाना खाकर मन भर जाए,पानी तुझे पिलाऊॅगा,फुदक-फुदक तू ऑगन भर … Read More

२ जून की रोटी | दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’

२ जून की रोटी सारा दिन,धूप ओढ़कर,मज़दूरी जब होती ।तब जाकर के खानें को,दो जून की रोटी मिलती।सिर का पसीना बहते-बहते,जब पांवों तक आ जाता।पांच बजे के बाद में उसको,कुछ … Read More

कवि मन की व्यथा | डाॅ बी के वर्मा ‘शैदी’

कवि मन की व्यथालिखिबे कूँ अब कवित्त, होत नायं तनिक चित्त,लिखें कौन के निमित्त? नाक-भौं सिकोरी है।श्रोता मिल सकत नायं, काहू पै बखत नायं,बैठिबे कौ ठौर काँयं? टाट है न … Read More

क्रोधाद्भवति सम्मोह: | सम्पूर्णानंद मिश्र

नियंत्रण होनाचाहिए क्रोध पर क्रोध की कोख सेमूढ़ता जन्मती है मूढ़ता तब तक शांत नहीं होती हैजब तक बुद्धि नाश न हो जाय और बुद्धिनाश सेमनुष्य अपने स्थान से च्युत … Read More

मॉ की याद बहुत आती है | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश

मॉ की याद बहुत आती है,आकर मुझे रुला जाती है। तब तो इतना ज्ञान नहीं था,शर्म नहीं अभिमान नहीं था।सूखे – गीले जैसे भी थे,मैं कोई भगवान नहीं था।बड़े चाव … Read More

दुर्मिल सवैया | हनुमान कृपा कर कष्ट हरो | बाबा कल्पनेश

दुर्मिल सवैया विधान-112×8 हनुमान कृपा कर कष्ट हरो , लकवा मन में अति पीर भरे।असहाय दुखी दिन दून हुआ , लख लें दृग में अति नीर भरे।।तुमसे बलवान नहीं जग … Read More

तुमने प्रियवर समझा होता | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’

इन अधरों की प्यास कभी,तुमने प्रियवर समझा होता।मृदुल तुम्हारी अलकों में,मेरा हाथ महकता होता।टेक। मन का भॅवरा खो जाता,बलखाती तेरी ऑखों में।कदम भटकते ही रहते,नित निर्जन सूनी राहों में।सॅझवाती का … Read More

पहली बार दिल्ली आगमन | रत्ना भदौरिया

पहली बार दिल्ली आने का खास कारण था उससे पहले दिल्ली क्या? घर से पच्चास किमी का भी सफल नहीं तय किया था दिल्ली तो साढ़े पांच सौ किलोमीटर था … Read More