मुड़े हम आज जगत से जगदीश्वर की ओर | विश्वास ‘लखनवी’

मुड़े हम आज जगत से जगदीश्वर की ओर | विश्वास ‘लखनवी’ मुड़े हम आज जगत से जगदीश्वर की ओरनिगल कर मधुर तमस की निशा हुई है भोर हुये उत्तीर्ण किये … Read More

हे नाथ तुम्हारी दया-दृष्टि से | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’

हे नाथ तुम्हारी दया-दृष्टि से,जग का सारा काम हो रहा।कण-कण में दिखती नई चेतना,नवल भोर सुखधाम हो रहा।टेक। नित कल-कल,छल-छल नदिया बहती,नित झर-झर निर्झर झरता है।तेरे चॉद-सितारों से ही,यह अम्बर … Read More

हिन्दी महाकुंभ 2025 में इंद्रेश भदौरिया ‘अवधी सम्राट’ हुए सम्मानित

जबलपुर। हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति समर्पित सेवाओं के लिए रायबरेली, उत्तर प्रदेश के इंद्रेश भदौरिया ‘अवधी सम्राट’ को हिन्दी महाकुंभ 2025 हिन्दी सेवी सम्मान से सम्मानित किया गया। … Read More

वसंत | बी.के. वर्मा शैदी

वसंत इत-उत, जित-जित ओर चितै,खिलै चित,प्रकृति-रचित कन-कन में वसंत है।वन-उपवन,कलियन औ’ सुमन मांहिं,अवनि,गगन में,सबन में वसंत है। साँस-साँस मधुमास की सुवास कौ निवास,मन में,बदन में,दृगन में वसंत है। पीत रंग,प्रीति … Read More

महाकुंभ और त्रिवेणी स्नान के कुछ निर्गुण दोहे | नरेन्द्र सिंह बघेल

महाकुंभ और त्रिवेणी स्नान के कुछ निर्गुण दोहे | नरेन्द्र सिंह बघेल (1 ) बचपन से हमने सुना,मोक्षदायिनी गंग । धोकर तन के पाप को ,करती काया चंग ।।( 2 … Read More

लगन के आगे मंजिल क्या ? | अनुज उपाध्याय

लगन के आगे मंजिल क्या ? लगन के आगे मंजिल क्या,किरण के आगे बादल क्या,दृष्ट के आगे दर्पण क्या,सृष्टि से बढ़के अर्पण क्या,जीवन से बढ़कर झूठा क्या है,मौत से बढ़कर … Read More

मज्जन फल पेखहिं तत्काला | सम्पूर्णानंद मिश्र

मज्जन फल पेखहिं तत्काला निःसंदेह शरीर भीगता हैमज्जित होने से लेकिनआत्मा नहीं आत्मा तो भीग सकती हैसिर्फ और सिर्फविचारों की पवित्रता के जल से नकारात्मकता की चादर की कुज्झटिकाओं सेजब … Read More

संस्पर्श | सम्पूर्णानंद मिश्र

लालच विहीन आँखेंदेखना चाहती हैंछूना चाहती हैंऔर चाहती हैं कुछ वक्तअपनी संतति से लेकिन भौतिकता कीअंधी दौड़ मेंआज की पीढ़ीसस्ते दामों मेंअपना वक्तबेचकरजब घर आती है तो वह फूली नहीं … Read More

परंपराओं को दर्शाती पुस्तक ‘देहरी’ का लखनऊ के प्रेस क्लब में हुआ भव्य विमोचन

लखनऊ : रायबरेली की सुप्रसिद्ध कवयित्री पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’ की पुस्तक ‘देहरी’ का भव्य विमोचन लखनऊ की विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार ‘अमिता दुबे’, अलका प्रमोद तथा सुप्रसिद्ध साहित्यकार संतलाल एवं सुप्रसिद्ध … Read More

हारे हुए लोग कहाँ जायेंगे ? ? | रिंशु राज यादव

हारे हुए लोग कहाँ जायेंगे ? ? हारे हुए लोगों के लिए कौन दुनिया बसाएगा?उन पराजित योद्धाओं के लिए ,तमाम शिकस्त खाए लोगों के लिए। प्रेम में टूटे हुए लोग,सारी … Read More

चरणों में यह जीवन है | जय शिव शंकर जय अविनाशी | कोई नहीं है अपना | ऋतु सावन की आई है | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

गुरु-पूर्णिमा के पावन अवसर पर पूज्य गुरुदेव को समर्पित एक गीत– शीर्षक:-चरणों में यह जीवन है। रोम-रोम में नाम तुम्हारा,सुधियों में छवि तेरी है,अनुप्राणित यह जीवन तुमसे,तुमसे दुनिया मेरी है। … Read More

जीवन ही प्रेम | मन से मन का मान रख | कैसे खेली हम आज कजरिया | सावन की घटा

1 .जीवन ही प्रेम है। मुहब्बत हर कण,हर क्षण में होता है,कोई खोकर पाता,कोई पाकर खोता है।पशु-पक्षी पेड़-पौधे,सबमें प्रकृति-प्रेम है,नजर तो जरा घुमाओ,सूक्ष्मता में भी स्नेह पाओ।सावन का प्रेमी है … Read More

कसूर | सम्पूर्णानंद मिश्र | हिंदी कविता

वे मासूम थेहांबिल्कुल मासूम थे कसूर क्या था उनकाबस इतना किनहीं खेल रहे थेकिसी खिलौनों से नहीं झूल रहे थे पार्क केकिसी झूले में बालपुस्तिकाभी नहीं थी हाथ में न … Read More

हर घड़ी याद आती रही है तेरी | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ | हिंदी कविताएं

हर घड़ी याद आती रही है तेरी कट गई जिन्दगी बस-सफर में मेरी,हर घड़ी याद आती रही है तेरी।1। बागबॉ बन हिफाजत मैं करता रहा,हर कली में थी खुशबू समाई … Read More

वरिष्ठ साहित्यकार हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’ का रचना संसार

शीर्षक:- परिभाषा लिखता हूॅ सम्बन्धों के धूप-छॉव की,परिभाषा लिखता हूॅ,टूटे दर्पण की पीड़ा-अभिलाषा लिखता हूॅ।टेक। मस्त नाचते मोर-मोरनी,जंगल की हरियाली में,चातक,दादुर खूब थिरकते,घिरी घटा मतवाली में।कोंपल कलिका व्यथित विरहिणी ,की … Read More