Hindi Poetry tum dabe paanv aana/अनुभव ‘अनंत

Hindi Poetry tum dabe paanv aana/अनुभव ‘अनंत

तुम दबे पांव आना


मै तुम्हे ख्वाबों में देख थक गया हूं
अब तुम खुली आंखों में मेरे पास आना
समय मै बतलाऊंगा बस तुम चली आना
तुम आना कि जब कोई किसी को ना देख सके
ना बात करे ना जाग सके
तब तुम चली आना
उजरी रातों में कोई देख लेगा तुम्हे
पूर्णिमा का परहेज करना
बादलो कि चुनरी ओढ़ लेने देना उस चांद को
या यूं करना तुम ही बादलो की चुनर ओढ़ आना
अमावस की स्याह रात आना
ख्वाबों में जैसे चहकते महकते आती हो,
वैसे मत आना
तुम दबे पांव आना
वैसे अकसर तो मै दरवाजा खुला रखता हूं
गर फिर भी बंद मिले
तो आवाज़ ना देना
धीरे से बस खटकाना दबे पांव आना
उम्मीद है हर रोज की तहत
मेरी आंखे अथक तुम्हे निहारती होंगी
गर बंद मिले आंखे मेरी
तुम मुझे आवाज से ना जगाना
छुअन भी महसूस मत कराना
अपनी गर्म सांसो से मेरी आंखो को सहलाना
मै तुम्हे ख्वाबों में देख थक गया हूं
अब तुम खुली आंखों में मेरे पास आना
मेरे पहलू के बैठना, मुस्काना, बाते करना
इतना बहुत है मुझे मनाने को
क्युकी तुम्हे तो पता है मै ज़रा नाराज हूं तुमसे
फिर भी ना मानू तो थोड़ा और मनाना
बेबस हूं तुमसे मिलने को
पर बंधा हूं शर्तों अनुबंधों में
कल रात ख़्वाब में जब से देखा है
तेरी आंख में आंसू
मेरे माथे पर सिलवटें सी आ गई हैं
तुझे पता है ना,
मुझे आंसू पसंद नहीं तेरी आंखो में
मेरी सिलवटें तुझे भी कहां पसंद है?
आना तो मेरे माथे की सिलवटें मिटाना
और अपने काजल को और मत फैलाना
शब्दों के शोर से मत कहना कुछ
इशारों से कहना, बताना, समझना
हल्का सा मुस्काना
अपनी पायल चाहे ना ही पहनना
उसकी छून छुन कोई भी सुन लेगा
गर पहन लेना तो मेरी मानना
तुम दबे पांव आना
मै तुम्हे ख्वाबों में देख थक गया हूं
अब तुम खुली आंखों में मेरे पास आना


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(अनुभव ‘अनंत’)

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