Holi Special poems in hindi|चटक हो सकते हैं
Holi Special poems in hindi
चटक हो सकते हैं
नहीं खिलते अब रंग
क्योंकि
घोर दिए गए हैं इसमें
अपाहिज़ मां के आंसू
लाचार पिता की छटपटाहट
बेवा बहन की चुप्पी
छल-कपट का धतूरा
नफ़रत के घेवर
तो फिर कैसे चटक
हो सकते हैं रंग प्रेम के
नहीं जब तलक
मां का आशीर्वाद
पिता के चेहरे पर
संतोष की व्याप्ति
बेवा बहन की
फटी हुई ज़िंदगी की
साड़ियों में विश्वास की तुरपाई
मजलूमों के अंधियार जीवन
में उम्मीदों की एक लौ
समाज व राष्ट्र के प्रति
अपनी नैतिक
जिम्मेदारियों के जल
को घोरा जायेगा
तब तक नहीं हो
सकते हैं चटक रंग प्रेम के
होली बनाम हो ली
होली आती है
चली जाती
नहीं धो पाता है
मन के मैल को
होली का रंग
अब भाभी देवर
दोनों के रिश्ते में
हंसी- ठिठोली
की मिठास
कहां रह गई है !
अब होली में
निरहुआ भाभी की
चिकोटी के बिना
ही रह जाता है
भाभियां आज
निरहुआ से डरी हुई हैं
रंग पुतवाए बिना ही पड़ी हुई हैं
बस औपचारिकता ही
शेष रह गई है
टूटे हुए संबंधों के वस्त्र
फटे ही रह जाते हैं
होली का पड़ाव
भी पार कर जाते हैं
होलिका हर साल
जल जाती है
कटुता बच जाती है
विजयी होने पर अपने
दंभ भरकर भाई- चारे
को चिढ़ाती है
मुंह बिराती है
एक यक्ष प्रश्न खड़ा है
मेरे सामने पूरी तरह
से निरुत्तर पड़ा है
आज नफ़रत के
उरग का फन मिलकर
सबको कुचलना होगा
उसकी सत्ता- समाप्ति के लिए
किसी न किसी को
गरल पीना होगा
सौहार्द को गले लगाना होगा
और होली में सद्भावों
का रसपान कराना होगा
नहीं तो होली हो ली
ही रह जायेगी !
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874