उड़ान/सम्पूर्णानंद मिश्र
उड़ान
कोमल हाथों से
आकाश छूने की
चाह रखे
वह मासूम दुनिया की
मक्कारी व षड्यंत्र की पाठशाला
से अभी बिल्कुल अबोध
था
नहीं शिकार हुआ था
वह अपनी ही
परछाईं का
दिखाई दे रही थी
जैसी यह सृष्टि
उसी रूप में ग्रहण करते हुए
चांद को अपनी मुट्ठी में
लेने की ख़्वाहिश
लिए हुए
वह निर्दोष
तेजी से अपनी
उड़ान भर रहा था
क्या पता था
उस निर्दोष को
उसकी
कल्पना के पंख
को
को काटने के लिए
अनेक दशग्रीव घात में हैं
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874