चाय की तलब |सम्पूर्णानंद मिश्र | Chai Par Kavita in Hindi
चाय की तलब
आज चाय की तलब ने
जल्दी ही जगा दिया
मेरे सोने पर पूरी तरह
पहरा लगा दिया
आज सण्डे का मजा
कुछ यूं ही बिगड़ गया!
चादर और चाय
में बहुत ही संघर्ष हुआ
दोनों को लड़ते देख
मुझे बहुत हर्ष हुआ
आज चाय की तलब ने
जल्दी ही जगा दिया
मेरे सोने पर पूरी तरह
पहरा लगा दिया
चादर अब पूरी तरह
मुझसे नाराज़ है
उसने कहा कि
रात को ताक़त अपनी
हम दिखा देंगे
आप की चाय को
बोरिया बिस्तरा बंधवा देंगे
इस श्रावण में मुझसे
ही प्रेम कीजिए
नए-नए प्रयोग बिल्कुल
न कीजिए
बारिश में मैं रुठ जाऊंगी
फिर वह भी नहीं भायेगी
चाय से चाहे जितना
ही प्रेम कीजिए
हर पांच मिनट में
दूसरे के ओंठ लग जाती है
यह कमबख़्त इश्क क्या जाने
मुझसे यदि कुछ यह सीख जाती
तो एक की ही बनकर
ज़िंदगी भर रह जाती!
बेवफ़ाई के कलंक से
वह पूरी तरह बच जाती
प्रेम की कीमत मुक्कमल
मैं चुकाती हूं
फटकर भी जाड़े में
प्रिय को बचाती हूं!
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874