सरेनी गोलीकाण्ड का गौरवशाली इतिहास – 18 अगस्त 1942
रायबरेली जनपद के अंतर्गत बैसवारा का प्रमुख क्षेत्र सरेनी है। यहाँ पर लगने वाली साप्ताहिक बाजार में उन्नाव, फतेहपुर रायबरेली के व्यापारी खरीद-फरोख्त करने आते हैं। सरेनी गाँव का अस्तित्व गुप्तकाल या सम्भवतः उससे पहले से है। सरेनी ग्राम के उत्तर-पूर्व में सिद्धेश्वर मंदिर में गुप्तकाल की मूर्तियां आज भी देखी जा सकती हैं।
ब्रिटिश काल के स्वाधीनता संग्राम में 18 अगस्त 1942 का ‘सरेनी गोलीकांड’ रायबरेली जिला का गौरवशाली इतिहास प्रतिबिंबित करता है। थाना सरेनी की स्थापना सन 1891 में हुई थी।
देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने को हजारों की संख्या में सरेनी क्षेत्र के देशभक्त तिरंगा फहराने के लिए थाने की ओर बढ़ने लगे। ब्रिटिश पुलिस की गोलियां इन वीरों के कदमों को न रोक सकी। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार सरेनी क्षेत्र के चौकीदारों ने रामपुर कला निवासी ठाकुर गुप्तार सिंह के नेतृत्व में 11 अगस्त 1942 को सरेनी बाजार में बैठक की और निर्णय लिया गया कि सरेनी थाने में तिरंगा फहराया जाएगा। 15 अगस्त 1942 को हैबतपुर में विशाल जनसभा में गुप्तार सिंह ने आंदोलन को अंतिम रूप देते हुए तिरंगा फहराने की तिथि 30 अगस्त सन 1942 निर्धारित की।
कुछ वसंती चोले वाले वीर युवकों ने 30 अगस्त के बजाय 18 अगस्त को ही तिरंगा फहराने की ठान ली। युवाओं के आह्वाहन पर हजारों की संख्या में भीड़ सरेनी बाजार में एकत्रित हुई। तत्कालीन थानेदार बहादुर सिंह ने भीड़ को आतंकित करने के लिए नवयुवक सूरज प्रसाद त्रिपाठी को गिरफ्तार कर लिया। उनके गिरफ्तारी की खबर आग की तरह फैलते ही आजादी के दीवानों ने थाने पर हमला कर दिया। थानेदार और सिपाहियों ने थाने की छत पर चढ़कर निहत्थे जनता पर गोलियां चलाना शुरू कर दी। इस गोलीकांड में भारत माँ के 5 वीर सपूत टिर्री सिंह (सुरजी पुर), सुक्खू सिंह (सरेनी), औदान सिंह (गौतमन खेड़ा), राम शंकर त्रिवेदी (मानपुर), चौधरी महादेव (हमीर गांव) शहीद हो गए और सैकड़ों क्रांतिकारी घायल हुए थे। सरेनी की पावन धरा वीरों के रक्त से लाल हो गयी थीं।
हर तरफ वन्दे मातरम, जय हिंद की गूँज सुनाई दे रही थी। रणबाकुरों ने अपनी शहादत स्वीकार की, किंतु ब्रिटिश हुकूमत के आगे न डरे, न झुके। देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले पाँच शहीदों की याद में थाना सरेनी के ठीक सामने शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया। इसके ठीक बगल में शहीद जूनियर हाई स्कूल परिसर में छोटा शहीद स्मारक का भी निर्माण कराया गया। शहीद स्मारक पर सन 1997 से प्रतिवर्ष 18 अगस्त को विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। मेला जैसा हर्ष उल्लास का वातावरण रहता है। तब जगदंबिका प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ की काव्य पंक्तियाँ सार्थक हो जाती हैं-
“शहीदों की चिताओं में लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे,
जब अपनी ही जमीं होगा अपना ही आसमां होगा।”
अशोक कुमार गौतम
असिस्टेंट प्रोफेसर
सरेनी – रायबरेली
9415951459