hindi kavita amar prem /सीताराम चौहान पथिक

अमर प्रेम ।।

(hindi kavita amar prem )


मैं    तुम्हारे   हॄदय की ,
इक  अनसुनी आवाज हूं ।
गीत     जो    पूरा ना हुआ ,
टूटा   हुआ   वह   साज हूं ।

कभी उपवन में खिला था ,
वह       सुगन्धित फूल हूं ।
फूल     कब   कुम्हला गया ,
उड़ती     हुई     बस धूल हूं ।

हॄदय – वीणा के सुरों में ,
मचलती थी रागिनी ।
कब विखंडित तार हुए ,
सो गयी मैं कामिनी ।

मैं   मधुर भीनी समीर ,
किया था तुमको अधीर ।
अब हवा का एक झोंका ,
साथ हूं – पर बे – शरीर ।

शहनाइयों की शाम थी ,
चांदनी  की मस्त रात ।
उन सुनहरे क्षणों की ,
कुछ याद है रूमानी बात ॽ

क्यों बनी संगीत  मादक ॽ
झनझनाए तार मन के ।
क्यों अचानक विदा ले ली ,
इक उदासी शाम बन के ।

जानता हूं दोष इसमें ,
ना मेरा है – ना तुम्हारा ।
हम तो बस कठपुतलियां हैं,
डोर खिंचते ही किनारा ।

समय  ज़रूर    आएगा ,
फिर से चलेंगे साथ मिलकर ।
पथिक, ना फिर अवरोध होगा ,
नाचे गाएंगे साथ मिलकर ।।

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सीताराम चौहान पथिक

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