hindi kavita smrtiyaan/डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
स्मृतियां
(hindi kavita smrtiyaan)
रह गईं केवल
स्मृतियां उस दालान
और घूरे की
जहां बचपन में
हम लोग छुपते थे
आइस- पाइस खेलते थे
साथी को ढूंढ़ने का एहसास
कुबेर के ख़ज़ाने को
पाने जैसा था
छुप जाया करते थे
घूरे के पीछे भी
छुप रहे हैं आज भी
कई चेहरों के साथ
अंतर सिर्फ़ यही है
कि तब राज
खोलने के लिए छुपते थे
और आज उसे
दफ़नाने के लिए
निर्ममता से ढहा
दिया गया बचपन के
उन उपकरणों को
बचपन की यादें जहां आज भी
अतीत की स्मृतियों को
लौटाना चाहती हैं
भाई के हिस्से का प्रेम
भाई को ही देना चाहती हैं
बदल गया सब कुछ वहां
ज़मींदोज़ हो गई दादी
अपनी कहानियों के साथ
लेकिन दिख रहा है
साफ़ बदलाव अब यहां
देशी कुत्तों की जगह
शेफर्ड भौंक रहे हैं अब
पीने लगे हैं
पनुआ की जगह चाय
यह बदलाव मिट्टी का है या
हमारे मन का
नहीं कह सकते हैं ठीक- ठीक
लेकिन इतना ज़रूर है कि
विकास के दौर से गुज़र रहे हैं
संयुक्त परिवार की परिभाषा
को बड़ी बेरहमी से तोड़ रहे हैं
सिर्फ़ और सिर्फ़
पत्नी के साथ
एक बच्चे को लेकर जी रहे हैं
प्रगतिशीलता के
शब्द- कोश में
भले ही इसे
विकास कह लें हम
सच कहूं तो बाबूजी
यह विकास नहीं
अपनी संस्कृति के खेत में
विनाश का विस्फोटक
बीज बो रहे हैं
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874
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