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रश्मि लहर की कविताएँ | हिंदीं कविता

१. सप्तर्षि का कंगन पहने

सप्तर्षि का कंगन पहने
अंबर कुछ मुस्काता है।

धीमे-धीमे, सॅंवर-सॅंवर कर
चंद्र किरण बिखराता है।।

धूप पूजती पाॅंव धरा के
जलधि प्रणाम सुहाता है।।

डोल-डोल कर मलय प्रफुल्लित
सरगम गान सुनाता है।

मन भीतर विश्वास उपजता,
भोर शगुन दे जाता है ।

स्मृतियों से दहक-दिवस
चहुं ओर अगन ले आता है।।

२. फिर से ना छेड़ो प्रिय

फिर से ना छेड़ो प्रिय
आयु की बात
सुनने दो मुझको
साठ की पदचाप

सुनते रहे अबतक
सबकी हर बात
यादों के लम्हात
उलझे बात बे बात
चाँदी भी सिमट आयी
बालों पे इक रात
आने दो जाने दो
उम्र की क्या बात

अब तक ना छायी है
सपनों पर रात
झिलमिल नैनो से
बहते जज़्बात
बारीक-सी थी
शिकवों की पुड़िया
आतुर उम्मीदो संग
गुम-सी इक गुड़िया
दायित्वों मे दब गये
सोने से ख्वाब
सुनने…

कुछ गुनगुनाऊँ आ
तुझको सजाऊँ
बेला चमेली ला
घर को लुभाऊँ
बाँहों मे पाऊँ
पुरानी सौगात
हौले से खोलूँ
मन की कोई गाँठ
सुनने…

३. प्रेम का चंदन ले आओ

मृत्यु आ जाने से पहले, प्रेम का चंदन ले आओ।
क्षीण बाहें कांपती हैं, नेह आलिंगन ले आओ।।

पट रही है ये धरा अब, मानवी-निश्चेष्ट तन से,
खुल चुकी हैं मुट्ठियां भी, जो बंधी थीं क्षणिक धन से।

टूटती हैं तन शिराएं, सजग अभिनंदन ले आओ।
मृत्यु आ जाने से पहले, प्रेम का चंदन ले आओ।।

पवन में चीखें घुली हैं, घूरतीं बुझती चिताएं।
जन्म-जन्मांतर के साथी, पर कहां संग मिट भी पाएं।

भ्रमित स्वर-लहरी न भाए, गीत का गुंजन ले आओ।
मृत्यु आ जाने से पहले, प्रेम का चंदन ले आओ।

जागकर मधुरिम सवेरा, दे नहीं ऊर्जा रहा है।
दु:ख कतारों में खड़ा, हर पीर को उलझा रहा।

जन्म लें कुछ नव-कथाएं, जागृति नंदन ले आओ।
मृत्यु आ जाने से पहले, प्रेम का चंदन ले आओ।


रश्मि लहर
लखनऊ

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