आइसक्रीम | रत्ना भदौरिया | लघुकथा
आइसक्रीम | रत्ना भदौरिया | लघुकथा
चाय- चाय कभी ढंग की चाय बना दिया करो। कभी चाय पत्ती ज्यादा तो कभी दूध और पानी। कभी इतना पका देंगी की पीते ही सिर दर्द पकड़ ले। सिर पर चाय का प्याला लेकर खड़ी हो गयीं। रहने दो आफिस से आये हुए घंटा हो गया है। खाना ही लगा दो । अभी तो मैं भी चली आ रही हूं आफिस से अभी खाना तैयार नहीं है। सुनो जितनी तनख्वाह तुम्हारी है उतनी मेरी भी कहते हुए, अर्चना अंदर चली गई आकाश टेबल पर बैठें बैठे बोलता रहा। तभी दरवाजे की घंटी बजी अब कौन आया सुनो अर्चना दरवाजा खोलो ।
आकाश तुम खोल दो बच्चे ट्यूशन से आये होंगे , कपड़े बदल रही हूं कहते हुए अर्चना बिस्तर पर लेट गई।
हां यहां तो आराम फरमा रहा था सुबह से गुस्से से आकाश ने भड़ाक से दरवाजा खोला पापा -पापा नीचे चलो आइसक्रीम दिला कर लाओ देखो न आज कितनी गर्मी है। बच्चों की बात से आकाश और गुस्सा मम्मा से कहो वो दिलायेगी। बच्चे भी चुपचाप आकर बैग रखा और कमरे में गये। आकाश टेबल पर बैठकर अभी भी कुछ न कुछ बोले जा रहा था लेकिन कमरे से न अर्चना निकली और न ही बच्चे।
तभी आकाश उठा और कमरे की तरफ बढ़ा तो देखा कमरा बंद है दरवाजा खटखटाने पर बच्चों ने दरवाजा खोला अरे ! यहां का नजारा तो कुछ और ही है सब आइसक्रीम खा रहे हैं और दिमाग ठंडा कर रहे हैं। तभी अर्चना ने मुस्कुराते हुए कहा -अगर दिमाग ठंडा करना है तो आ जाओ तुम भी आकाश और हां इसलिए नहीं बुलाया गर्म और ठंड से ज़ुकाम न हो जाये। तब तक बच्चे भी आओ पापा आओ दिमाग ठंडा करो कहते हुए बच्चों ने आइसक्रीम आकाश के हाथ में पकड़ा दी । आकाश आइसक्रीम लेते हुए ये बताओ ये आइसक्रीम आयी कहां से। तब तक अर्चना और बच्चे सब एक ही स्वर में दिमाग ठंडा करो दिमाग ठंडा और हां जुकाम का भी ध्यान रखो जुकाम का —–। और सब खिलखिलाकर हंस पड़े। लेकिन आकाश का गुस्सा पिघल गया ठीक वैसे ही जैसे मुंह में आइसक्रीम पिघल जाती है।
रत्ना भदौरिया रायबरेली उत्तर प्रदेश