मौत | हिंदी कहानी | सम्पूर्णानंद मिश्र
मौत | हिंदी कहानी | सम्पूर्णानंद मिश्र
बनारस उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी है। यहां सुबह तीन बजे से घाटों पर संतों की आवाजाही होने लगती है। मंदिरों में घण्टियां बजने लगती हैं।
दान- पुण्य, कीर्तन, पूजा पाठ की ध्वनि कानों में सुबह-सुबह गूंजने लगती है। यह नगर भगवान शिव के त्रिशूल पर बसा हुआ है। यहां पुण्य और पाप में संतुलन बना हुआ है। भगवान भोलेनाथ की अहैतुक कृपा है इस शहर पर। बिना खाए कोई सोता नहीं है। एक से एक धर्मात्मा आज भी यहां हैं जो दिन में तो व्यापार का काम करते हैं लेकिन रात में धर्म-कर्म के काम में लगे रहते हैं। इसी शहर में एक नदी है ।
वरुणा जो आज भी अस्तित्व में है। अस्सी नदी तो न जाने कब से सूखी हुई है। इसी वरुणा नदी के पार एक बाज़ार है जिसे अर्दली बाज़ार के नाम से जाना जाता है। शाम को यह बाज़ार दुल्हन की तरह सज जाता है। बाहर से आने वाले पर्यटकों को यह बाज़ार अपनी तरफ़ आकृष्ट करता है। लोग यहां ख़ूब ख़रीददारियां भी करते हैं। दुकानदार भी एक का दो बेचकर लाल हैं। खासकर यह बाज़ार औरतों को अपनी तरफ़ खूब खींचता है जैसे लोहे को चुंबक खींचता है वैसे महिलाओं को यहां का बाज़ार। दुकानदार तो विक्रय- कला में इतने पारंगत हैं कि महिलाओं की चाह को तुरंत तड़ जाते हैं। यदि इन्हें महिला मनोविज्ञानी कहा जाय तो कोई अतिरंजना नहीं होगी।
इसी बाज़ार के पास एक पुलिस चौकी है जिसमें अमूमन बीस से पच्चीस कांस्टेबल दो हेड कांस्टेबल और एक चौकी प्रभारी पदस्थ हैं। दिनभर वे अपने काम में व्यस्त रहते हैं। रात में यदा कदा चौकी प्रभारी अपने मातहतों के साथ डंडे फटकारते हुए पुलिस चौकी और अपने होने का शक्ति प्रदर्शन करते रहते हैं। एकाक मोटरसाइकिल वालों पर अपना रौब जमाते हुए उनसे गाड़ी के काग़ज़ात इस तरह मांगते हैं जैसे वह सीमा तोड़कर यहां घुस आया हो। इसी पुलिस चौकी के बगल में सुबह सात बजे एक मेला लगता है मजदूरों का जिसमें वे रोज़ बिकने आते हैं और उनको मालिक ख़रीद कर अपने ठिए पर ले जाते हैं, शाम के समय पारिश्रमिक देकर उन्हें छोड़ देते हैं।
आज सुबह सात बजे बिरजू घर से आकर एक कोने में खड़ा हो गया। रोज़ के मुताबिक साढ़े सात बजते-बजते मज़दूरों की भीड़ इकट्ठी हो गई। मालिक आते गए मज़दूरों से भाव- ताव करके उन्हें काम के लिए ले जाते रहे। सभी मज़दूर नौ बजते-बजते अपने- अपने काम पर चले गए थे सिर्फ़ बिरजू को छोड़कर। बिरजू पर किसी मालिक की नज़र नहीं पड़ी ऐसा नहीं था। दरअसल बिरज़ू बहुत दुबला- पतला और छोटे कद काठी का था और थोड़ा शर्मीला भी। काम में भी वह उतना निपुण नहीं था जितना और मज़दूर। इसलिए जल्दी कोई मालिक उसे काम पर अपने यहां नहीं ले जाता था। कोरोना काल में ही माता-पिता के निधन से घर की जिम्मेदारी उसके कंधों पर झूल रही थी।
पिता भी मज़दूरी करते करते इस नश्वर संसार को छोड़कर एक दूसरी दुनिया में चले गए,जहां जीते जी कोई नहीं जा सकता। बिरजू बाइस साल का ही था जब उसके पिता का शरीर छूटा था। चार साल पहले ही उसकी शादी दुलारी से हुई थी। तीन बेटियां ही थी। कुल पांच लोगों का खर्च और घर में भूंजी भांग नहीं! पिता अलगू ने विरासत के नाम पर कुछ कर्ज़ का ठप्पा उसकी पीठ पर लगा दिया था जिसका निशान अभी भी उसकी पीठ पर है। आज वह दस बजे तक इंतज़ार करता रहा। रात में इस प्रचण्ड गर्मी में उसने पूरे परिवार को भूख की आग में झोंक दिया था। पत्नी दुलारी ने मटकी से पानी निकालकर बच्चियों को पिलाकर किसी तरह से सुला दिया। लेकिन रात के तीन बजे छोटी बच्ची अभी नौ माह की ही थी जोर-जोर से रोने लगी। उसे ज़ोरों से भूख लगी थी।
दुलारी को भी इतना आहार नहीं मिलता था कि उसके स्तन से दूध की धारा बह सके। खैर रात किसी तरह बीत गई।बच्चियों के पेट भरने की चिंता उसे खाए जा रही थी। ग़रीबी उसका इंतहान ले रही थी और वह कई दिनों से लगातार उसमें फेल हो रहा था। पिता के रहते-रहते उसने वह कौशल नहीं सीखा जिसकी आज उसे सबसे जरूरत थी। पिता वह बरगद होता है जो अपनी संतानों को कष्ट के धूप से बचाकर सुख की छाया में सुलाता है। आज उसे पिता की बहुत याद आ रही है। घर के एक कोने में बैठकर झर- झर वह रो रहा था।सुबह के दस बजे चुके थे। आसमान से आग की वर्षा हो रही थी। पूरा शरीर उसका झुलस गया था। पेट में जोरों से भूख लगी थी। बिरजू किंकर्तव्यविमूढ़ था। इसी धर्म की नगरी में इन तीन घण्टों में तमाम रईस अपनी अपनी गाड़ियों से आते जाते रहे, लेकिन किसी ने उसके चेहरे को पढ़ने की जुर्रत नहीं की। ग़रीब होना ही सबसे बड़ा अभिशाप है इस दुनिया में। भरे को सब भरता है खाली को कोई नहीं।अचानक एक आदमी आकर अपने यहां काम पर उसे ले जाता है। उसके यहां एक मज़दूर की कमी थी। वह आज काम पर नहीं आया था छत की लिण्टरिंग की तैयारी चल रही थी नीचे से ईंटें पहुंचाने थे। बिरजू जब काम पर पहुंचा तो उसे भूख और प्यास दोनों लगी थी। मालिक ने उसे काम के लिए न पानी पूछा न दाना। वह काम में लग गया था। घर की याद उसे बहुत आ रही थी। बच्चियों की भूख की चिंता में और स्वयं भूखे होने के कारण ईंट की दूसरी ट्रिप ले जाते वक्त उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया, और वह ऊपर से भहराकर नीचे गिर गया। किसी मज़दूर ने मालिक के कान में आकर कहा कि बिरजू की मौत हो गई। सारे मज़दूर काम रोककर उसे देखने लगे। थोड़े ही देर में काफ़ी भीड़ इकट्ठी हो गई।
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874