प्रेम पत्र /शैलेन्द्र कुमार
प्रेम पत्र /शैलेन्द्र कुमार
प्रेम पत्र
तुम्हे लिखूं कैसे?
कैसे व्यक्त करूं
ह्रदय के भाव तुमसे।
संकोच में रूठ गए शब्द सारे
दुविधा में बीत गए मौसम सारे।
अजीब दशा है, खुशी भी, डर भी
लिखने में कांँप रहे हाथ हमारे।
कैसे व्यक्त करूं
हृदय के भाव तुमसे।
प्रेम पत्र
तुम्हे लिखूं कैसे।
प्रिय, प्रियतमा, सजनी, दिलरुबा
तुम्हारे नाम से पहले मैं क्या लिखूं?
कैसे करूं अभिवादन, प्यार लिखूं?
पत्र की पहली पंक्ति में तुम्हे क्या लिखूं?
तुम्हे प्रसन्न
करूं कैसे
प्रेम पत्र तुम्हे
लिखूं कैसे।
मिल नहीं रही सुंदर सी पंक्ति कोई
पढ़े गीत, गजल, काव्य संग्रह सारे।
किस कथन से करूं प्रशंसा तुम्हारी
नाटकों, फिल्मों के खोजे संवाद सारे।
मन की बात
कहूं कैसे
प्रेम पत्र
तुम्हे लिखूं कैसे?
प्लीज पढ़ना पूरा प्रेम पत्र तुम मेरा
न छोड़ देना तुम बीच में ही अधूरा।
पढ़कर न हो जाना नाराज मुझसे
उत्तर देना मुझे, करता हूं प्यार तुमसे।
धैर्य मैं
रखूं कैसे
प्रेम पत्र तुम्हे
लिखूं कैसे।
पत्र में रखकर गुलाब भेजूं
या प्रेम की कोई किताब भेजूं।
समझ ही नहीं आता मुझे
कि तुम्हे कौन सा उपहार भेजूं।
निर्णय मैं
इसका करूं कैसे
प्रेम पत्र
तुम्हे लिखूं कैसे।
अब रहता हूं मैं प्रसन्न सदा
पर डर जाता हूं मैं यदा कदा
यदि नहीं किया स्वीकार तुमने
जिएंगे कैसे? कैसे होगा निबाह मेरा।
स्थिर स्वयं को
रखूं कैसे
प्रेम पत्र
तुम्हे लिखूं कैसे।
होती रहती है हलचल मन में तन में
मन नहीं लगता अब किसी तरह से
भेजना पत्र का उत्तर जल्दी ही वरना
प्रतीक्षा ही प्राण ले लेगी मेरे कसम से।
बेचैनी अपनी
कहूं किससे
प्रेम पत्र
तुम्हे लिखूं कैसे।
छुप छुप देख रहा तेरी तस्वीर कबसे
पता नहीं कब हो गया प्यार तुमसे
प्राण हो तुम मेरी, इसी तरह तुम भी
कह दो कि तुमको भी है प्यार हमसे।
यह बात
कैसे कहूं तुमसे
प्रेम पत्र
तुम्हे लिखूं कैसे।
शैलेन्द्र कुमार असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी
राजकीय महिला महाविद्यालय कन्नौज