kahan ho tum – कहाँ हो तुम
कहाँ हो तुम
हर पल मेरी आँख ढूंढ़ती रही ।
जाने कहाँ वो प्यार की मूरत गयी ।
दूसरों को देख कर सिसकता ही रहा ।
अपने ग़म सीने में दिए जमा
किसी से कुछ न कहा ।
बरसों गए बीत इसी चाह में।
उसके आने से बिछेंगे फूल मेरी भी राह में ।
उसके प्यारे बोल मुझे भी सुनाई देंगे ।
इसका भी है कोई लोग ये कहेंगे ।
मालूम है ये आस कभी सच न होगी ।
जिसने फेंक दिया कचरे में जाने वह कहाँ होगी।
गर मालूम चला तो भी आँचल से न ढ़ांपेगी।
उसकी ज़ुबान इस बोतल बिनने वाले को अपना कहने में कांपेंगी ।
सुनते हो सदा से की
पूत कपूत हो जाता है ।
न माता होती कुमाता है।
अब ज़िंदा रहने का यही गुज़ारा है।
बोतल बिनना ही माँ और यही बाप हमारा है ।
यही मेरी सरकार मेरा सारा जहान है ।
सच है मेरा भारत महान है ।
क्या मालूम
कौन करेगा क्या
किसने किसको चुनना है ।
मेरा संसार स्टेशन
पटरी को ही मेरा भविष्य बुनना है ।
अकेला नहीं कई साथी साथ हैं ।
सबके हाथ में बोरा , बोतल बिनने की औकात है ।
पथरीली कठोर किस्मत लोहे सी कद काठी है ।
अपने को सदा मजबूत बनाती मित्र-पुलिस की लाठी है ।
जूठन फेंका हुआ खाना ही हमें नसीब है ।
हम अभी छोटे वाले गरीब हैं।
गलती से गलती बनी अपनी यही राह है ।
बोतल बिनना गुनाह है ।
बोतल बिनना गुनाह है
प्रस्तुत कविता आशुतोष झा की स्वरचित रचना kahan Ho tum – कहाँ हो तुम कैसी लगी , पसंद आये तो समाजिक मंचो पर शेयर करे इससे रचनाकार का उत्साह बढ़ता है।हिंदीरचनाकर पर अपनी रचना भेजने के लिए व्हाट्सएप्प नंबर 91 94540 02444, 9621313609 संपर्क कर कर सकते है। ईमेल के द्वारा रचना भेजने के लिए help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है|
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