मैं जाना चाहती थी / ज्योति गुप्ता
मैं जाना चाहती थी
मैं जाना चाहती थी
तुमसे दूर , बहुत दूर
की तुम्हारा दिया कुछ भी अब बोझ लगने लगा था,
वो आखिरी आलिंगन
वो आंसुओ के आखिरी चुम्बन
जो आज भी ओस की बूंदों सा बायी गर्दन पर ठहरे है,
………..
पर कहां जानती थी मै
की हमारे बीच कभी कुछ आखिरी नही हो सकता
न वो आलिंगन आखिरी था , न आखिरी थे वो बहते आंसू,
तुम चले आए
हर क्षण लौटकर मेरे पास
मेरी काया की हर परत छूने, मेरी आंखों से बार बार बहने,
हां मिथ्या था
मेरा कहना की
मै जाना चाहती थी तुमसे दूर, बहुत दूर ।।