घेर रहे संकट के बादल / बाबा कल्पनेश

घेर रहे संकट के बादल / बाबा कल्पनेश

घेर रहे संकट के बादल,फिर से चारो ओर।
शीश कतर देने की घटना,का कितना है शोर।।

सुनकर रुदन पड़ोसी जन की,करना मत आवाज।
गलाकाट दल सुन लेगा तो,करे वही आगाज।।
हिंदू होकर अब भारत में,रहना है अपराध।
इस्लामिक विस्तार लक्ष्य में,सह्य नही है बाध।।
यही एक इस्लामिक नारा,कर्कष रव घन घोर।
शीश कतर देने की घटना,का कितना है शोर।।

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नहीं प्यार की भाषा इनमें,जगा सके कुछ बोध।
कैसे इनसे बच पाएँ हम,युक्ति नवल कर शोध।।
दादा की लाठी बच जाए,गत हो जाए साँप।
कलम लिखेगी अभिनंदन यह,युक्ति कहे जो भाँप।
रक्त बीज जैसे ये पनपे,दिखे न अंतिम छोर।
शीश कतर देने की घटना,का कितना है शोर।।

सब में पीर निहारे सम जो,कदम बढ़ाए साथ।
संभव केवल इन नागों को,पाएगा वह नाथ।।
जिनके काटे लहर न आए,हर लेता है प्राण।
पूरा भारत जहरीलों से,चाह रहा है त्राण।।
जाने कैसा अजगर आया,निगल रहा है भोर।
शीश कतर देने की घटना,का कितना है शोर।

-बाबा कल्पनेश

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