सफर / वेदिका श्रीवास्तव नेहा | Vedika Srivastava New Poetry
सफर
निकले हैं सफर पे तो रुकना भी ज़रूरी है ,
मिलेंगे कई चेहरों से ,मिलना भी ज़रूरी है |
साथ दे हर मुसाफिर,हर मुसाफिर का यहाँ कैसे !
मंजिल अलग है सबकी तो थोड़ा भटकना भी ज़रूरी है |
कभी पतझड तो कभी हरियाली का दृष्य होगा सामने ,
चुनना है हमे क्या इसका ईरादा भी ज़रूरी है |
कभी उतरेंगे ,कभी चढेंगे बारी -बारी से य़ात्री यहाँ ,
भय में गुजरती है कैसे ज़िन्दगी,खबर इसकी भी ज़रूरी है |
चला रहा है जो गाडी इस सफर में ‘वेदि ‘,
उस पर भरोसा और थोड़ा साहस भी ज़रूरी है !
जल्दबाजी में कहीं हम दूर ना निकल जायें ,
मुड़ कर पिछे देखना भी ज़रूरी है |
कहीं खो भी ना जायें इस भीड़ में हम ,
अपने रस्ते की दिशा का ग्यान भी ज़रूरी है !
वेदिका श्रीवास्तव नेहा