मतदाता जागो | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

बजी दुन्दुभी फिर चुनाव की,
मतदाता जागो।
संविधान सम्मत अपना तुम,
सारा हक मॉगो।टेक।

राजनीति के सफल खिलाड़ी,
ऑसू भी घड़ियाली हैं,
खद्दर पहन बने छैला ये,
बॉट रहे हरियाली हैं।
नहीं तुम्हारी चिन्ता इनको,
सीमा तुम लॉघो।
बजी दुन्दभी फिर चुनाव की,
मतदाता जागो।1।

यह किसान,व्यवसायी के ही,
कर से पलने वाले हैं,
कुछ ओछे,कुछ भ्रष्टाचारी,
बात मुकरने वाले हैं।
खुद पेंशन पर पेंशन लेते,
कुछ जवाब मॉगो।
बजी दुन्दुभी फिर चुनाव की,
मतदाता जागो।2।

नहीं देश की चिन्ता जिनको,
उनको कहीं न चुन लेना,
देश-धर्म की मर्यादा हित,
ताना-बाना बुन लेना।
विश्व-पूज्य इस भरत-भूमि हित,
भेदभाव त्यागो।
बजी दुन्दुभी फिर चुनाव की,
मतदाता जागो।3।

छल-कपट तुम्हारे पैसों से,
करते हैं तूफानी दौरा,
तलुवा तक की धूल उठाते,
कली संग में जैसे भौंरा।
युवा,वृद्ध की चिन्ता जिसको,
उसके हित भागो।
बजी दुन्दुभी फिर चुनाव की,
मतदाता जागो।4।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;
रायबरेली (उप्र) 229010

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