मिलो इस बार फागुन में | रश्मि लहर
मिलो इस बार फागुन में | रश्मि लहर
खिला टेसू धरा महकी मिलो इस बार फागुन में।
मिलन-सुधि भी मिली बहकी, मिलो इस बार फागुन में।।
हुए शाखों के रक्तिम से,
कपोलों को तनिक देखो।
कली रचने लगी चुपके
प्रणय के छंद मत रोको।
हवा हो बावरी कहती, मिलो इस बार फागुन में।
मिलन-सुधि भी मिली बहकी, मिलो इस बार फागुन में।
कहीं सखियाॅं, कहीं कान्हा,
कहीं गोपी, कहीं ग्वाले।
कहीं मदमस्त से भौरें
करें मिल नृत्य मतवाले।
कहे कालिन्दी भी बहती मिलो इस बार फागुन में।।
मिलन-सुधि भी मिली बहकी, मिलो इस बार फागुन में।।
कहीं इठला पड़ी निशिता,
कहीं वंशी लजाती है।
मधुर जो तान बजती है,
प्रकृति को वो लुभाती है।
प्रतीक्षित राधिका कहती, मिलो इस बार फागुन में।।
मिलन-सुधि भी मिली बहकी, मिलो इस बार फागुन में।
रश्मि लहर
लखनऊ उत्तर प्रदेश