संग हम साथ होंगे | सम्पूर्णानंद मिश्र
संग हम साथ होंगे | सम्पूर्णानंद मिश्र
क्यों
भाग रहे हो
हाथ मेरा छुड़ा रहे हो
मैं लेने जब आऊंगी
लेकर ही जाऊंगी
फिर भी भाग रहे हो
बाहें मेरी छुड़ा रहे हो
कत्ल भी करते हो
इल्ज़ाम मुझ पर मढ़ते हो
कैसी तुम्हारी यह रीति है
मुझसे यह कैसी प्रीति है
जब- जब निराश होगे
संग हम साथ होंगे
फिर भी तुम भाग रहे हो
बाहें मेरी छुड़ा रहे हो
संघर्ष निरंतर करते रहो
स्वयं से लड़ते रहो
भीतर से तुम्हें लड़ना है
बाहर से नहीं डरना है
कंटकों से भरा पथ है
आत्मबल ही तुम्हारा रथ है
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874