नक़ाब / सम्पूर्णानंद मिश्र
नक़ाब
नक़ाब
के पीछे का
चेहरा ख़ूबसूरत हो
नहीं होता ऐसा हमेशा
हां
यह बिल्कुल सत्य है कि
नक़ाब के उतरने पर
ही यथार्थ सामने आता है
वैसे
नक़ाब के चरित्र का
एक उज्ज्वल पक्ष है
थोड़े समय के लिए
विद्रूपता को
अपने पेट में समा लेती है
सत्य के मुंह का कपाट
आसानी से नहीं खोलती
जब तक पर्दानशीं
की रजामंदी से
उसको खोला न जाय
लेकिन
इतना तय है कि
जब कोई आंधी
नक़ाब की उतरन हटाती है
तो उसकी कुरूपता
कई रूपों में सामने आती है
जो मस्तिष्क में ही नहीं
आत्मा में घर बना जाती है
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874