गुमनाम आंखें | अभय प्रताप सिंह | हिंदी कहानी

गुमनाम आंखें | अभय प्रताप सिंह | हिंदी कहानी

अस्पताल में कमरे के बाहर मास्टर साहब कभी खड़े होते तो कभी इधर – उधर टहलने लगते , कभी बैठ जाते तो कभी डॉक्टरों से अपनी पत्नी और होने वाले बच्चे का हाल चाल पूछने लगते , मास्टर साहब आज बहुत हैरान हैं , परेशान हैं , किसी के इंतजार में हैं , उनके पास सबकुछ है , धन है , दौलत है , रुपया है ,बहुत सारा ज़मीन है , कार है ,बंगला है और एक निजी विद्यालय भी है जहां बच्चे पढ़ने जाने के लिए रोज़ जल्दी से तैयार होकर चले जाते थे , आज अगर मास्टर साहब हैरान और परेशान थे तो वो थे अपने होने वाले बच्चे के लिए और पत्नी के लिए।थोड़ी देर बाद कमरे से एक आवाज़ आई , बधाई हो ” घर में लक्ष्मी आई है ” इतना सुनते ही मास्टर साहब अपनी खुशी कुछ यूं बयां किए की उनकी आंखों में आंसू आ गए और वो झटपट अपनी बिटिया को देखने के लिए अस्पताल के कमरे में दौड़े चले गए और झट से बिटिया को अपनी गोद में उठाते हुए बोले – ” कितनी प्यारी है मेरी बच्ची ” ।

कुछ दिन बाद जब बिटिया का नामकरण हुआ तो मास्टर साहब और बाकी परिवार के सदस्य मिलकर उस बच्ची का नाम ” सुस्मिता ” रखे। अब सभी लोग उस बच्ची को सुस्मिता – सुस्मिता कहकर ही पुकारने लगे थे, सुस्मिता अभी छोटी थी तो परिवार के सभी सदस्य खासकर मास्टर साहब उसे बहुत चाहते थे । अभी सुस्मिता करीब ढाई साल की ही हुई थी की मास्टर साहब को एक लड़का हुआ , अब सुस्मिता को एक छोटा सा नन्हा सा भाई भी मिल गया था जिसके साथ वो हर रोज़ खेलती थी ,प्यार से रहती लड़ती ,झगड़ती ।शुरुवात के कुछ सालों में तो सुस्मिता अपने पापा यानी मास्टर साहब के ही विद्यालय में पढ़ी थी लेकिन जब वो वहां से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर ली तो डिग्री लेने के लिए शहर चली गई। सुस्मिता जितनी सुंदर थी उतनी पढ़ने में भी होशियार थी और देखते ही देखते उसने अपनी डिग्री भी पूरी कर ली । डिग्री पूरी करने के बाद जब सुस्मिता घर वापस आई तो मास्टर साहब उनकी पत्नी और उनका बेटा यानी सुस्मिता का छोटा भाई सुस्मिता को देखकर बहुत खुश हो गए। डिग्री लेने के बाद सुस्मिता कुछ दिन परिवार के सदस्यों के साथ अपना समय व्यतीत करने की इच्छा जाहिर की जिसे कोई ख़ारिज भी न कर सका। अब सुस्मिता बड़ी हो गई थी , शादी लायक हो गई थी इसलिए मास्टर साहब सुस्मिता की शादी के लिए एक अच्छा लड़का ,अच्छा हमसफर , अच्छा जीवन साथी ढूंढने लगे ।

कुछ सालों में वो इस काम में सफ़ल भी हो गए और दोनों परिवारों में शादी की बात शुरू हो गई , लेन – देन की बातें हुई , रीति – रिवाजों की बातें हुई और साथ ही साथ संस्कारों की भी बातें हुई , कुछ दिनों बाद नतीजा ये निकला की सुस्मिता की शादी वहीं की जाएगी ।देखते ही देखते पूरे साज – ओ – सामान के साथ , धूम धाम के साथ सुस्मिता की शादी अभिनाश से कर दी गई, शादी होने के बाद मास्टर साहब अपनी बिटिया को नम आंखों से उसके दूसरे घर यानी उसकी ससुराल के लिए उसे विदा कर दिए । सुस्मिता अपने पति यानी अभिनाश के साथ और उनके परिवार के साथ बहुत खुश थी , धीरे – धीर सुस्मिता उस परिवार में घुल मिल गई और इधर मास्टर साहब का परिवार भी इस बात से बहुत खुश था की उनकी प्यारी सी बिटिया को एक अच्छे हमसफर , जीवनसाथी के साथ – साथ एक अच्छा परिवार भी मिल गया।

शादी के करीब दो साल बाद सुस्मिता को अस्पताल ले जाया गया क्योंकि सुस्मिता मां बनने वाली थी , आज अभिनाश का वही हाल था जो करीब 27 सालों पहले मास्टर साहब का था ,कुछ देर बाद फिर वही आवाज़ गूंजी – ” बधाई हो घर में लक्ष्मी आई है “आज अभिनाश भी उतना ही खुश थे जितना बरसों पहले मास्टर साहब थे, मानो वो दिन वापस आ गया हो । कुछ दिन बाद बिटिया का नामकरण हुआ तो अभिनाश , सुस्मिता और परिवार के सभी सदस्यों ने मिलकर उसका नाम ” शानवी ” रखा ।शानवी जितनी सुंदर थी उतनी नटखट भी थी मानो की बिलकुल अपनी मां सुस्मिता पर गई हो , करीब डेढ़ साल बाद ही सुस्मिता को एक लड़का हुआ जिसका नाम ” विराट ” रखा गया ।अब शानवी को एक भाई मिल गया था और सुस्मिता को एक हरा – भरा खुशहाल परिवार , घर में पहले से भी किसी चीज की कमी नहीं थी इसलिए सब कुछ अच्छा चल रहा था और सभी लोग बहुत खुश थे। दोनों परिवार के सदस्यों की खुशियों का मानो कोई ठिकाना ही न हो , जिस तरह बरसों पहले सुस्मिता को उनका भाई और मास्टर साहब को लड़का होने का खुशी था ठीक उसी प्रकार आज शानवी को भाई और अभिनाश को विराट के रूप में एक बेटा मिल गया था, शायद इसलिए वो दोनों परिवार इतने खुश नज़र आ रहे थे।

अब विराट दो महीने का हो चुका था लेकिन दुःख की बात ये थी की उस बच्चे को मानो मां का प्यार नसीब ही न रहा हो, जैसे ही विराट दो महीने का हुआ वैसे ही उसकी मां यानी सुस्मिता को कुछ समस्याएं हुई और उनको अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया । धीरे – धीरे उनकी हालत भी सुधरने लगी थी लेकिन कुछ महीनों बाद फिर से उनकी हालत गंभीर होती चली गई , बड़े से बड़े अस्पताल में दिखाया गया , महंगे से महंगे अस्पताल में दिखाया गया लेकिन कुछ सुधार होने की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आ रही थी , नतीज़ा ये निकला की अब इनका ऑपरेशन करना पड़ेगा ।

कुछ दिन बाद दोनों परिवारों की सहमति से सुस्मिता का ऑपरेशन भी हो गया लेकिन कोई सुधार नहीं होता दिख रहा था , डॉक्टर ऑपरेशन पर ऑपरेशन कर रहे थे लेकिन सुधार होनी की जगह सुस्मिता की हालत और भी गंभीर होती चली जा रही थी , रुपए भी बहुत खर्च होते जा रहे थे लेकिन नतीजा नकारात्मक ही रहा , क़रीब 6 महीने अस्पताल में रहने की वजह से ,दवा की वज़ह से और ऑपरेशन की वजह से सुस्मिता की शरीर बिलकुल काली पड़ गई थी , सुंदर रंग भी काला हो गया था , सुस्मिता को देखकर लग ही नहीं रहा था की ये पहले वाली सुस्मिता हैं।कुछ दिनों के बाद …..मास्टर साहब के परिवार से एक सदस्य आंखों में आंसू भरे सुस्मिता से सवाल पर सवाल कर रहे थे …बिटिया तुम परेशान न हो …सबकुछ ठीक होई जाई…तुम बिलकुल ठीक हो…तुमका कुछ न होई…तुम काहे लिए परेशान हो ….देखो भईया नीचे तुम्हार इंतजार कर रहे हैं…भईया से बात करना है न तुमको….भईया को चाहती हो न तुम …परेशान न हो शानवी और विराट भी ठीक हैं वो अभी घर पर हैं…तुमको देखना है क्या उनको …देखो पापा भी यहीं पर हैं , अभिनाश भी यहीं पर हैं…तुम चिंता न करो ,तुम बहुत जल्द ठीक होईके शानवी और अभिनाश से मिलोगी …तुम जैसे ही बच्चों से मिलोगी खुद मा खुद ठीक हो जाओगी…बच्चे तुम्हारा घर पर इंतजार कर रहे हैं….घर चलोगी न तुम ….?कुछ इस तरह के सवाल करते हुए वे सज्जन अपनी आंखों में भरे आंसुओं को छिपा रहे थे लेकिन सुस्मिता बोल नही पा रही थी लेकिन वो सुन सकती थी , सुस्मिता के दोनों हांथ बंधे थे परंतु उनकी आंखों से निकलते वो आंसू साफ़ दिखाई पड़ रहे थे मानो वो कहना चाह रही हों की अब मुझे इस दर्द से छुटकारा दिला दो , अब मै अपने परिवार , मम्मी – पापा, बच्चों और पति से कभी नहीं मिल पाऊंगी।

एक दिन बाद ….सुस्मिता उसी अस्पताल में उस दर्द से लड़ते हुए अपने परिवार, पति ,पापा – मम्मी, भईया – भाभी , और अपने दोनों बच्चों शानवी जिसकी उम्र महज़ दो वर्ष और विराट जिसका उम्र महज आठ महीने ही था , वो उन सब को छोड़कर हमेशा – हमेशा के लिए उनसे दूर हो गई, सुस्मिता अब उन सब के बीच नहीं रही , डॉक्टरों की मेहनत , परिवार के सदस्यों का प्यार , पैसा सब धरा का धरा रह गया।सुस्मिता की मृत शरीर को जब घर लाया गया तो वहां लोगों का तांता बंध गया उनको देखने के लिए परिवार के सदस्यों का रो – रो कर बुरा हाल हो गया था , मास्टर साहब उनकी पत्नी और बच्चे भी बहुत रो रहे थे मानो आज उनका सबकुछ उजड़ गया हो, अभिनाश अलग से परेशान थे उनके आंखों से आंसू यूं बह रहे थे मानो रुकने का नाम ही न ले रहे हों ।

इन सब के साथ साथ – साथ उन दोनों बच्चों का रोना ,जिन्हें शायद ये भी नहीं पता रहा होगा की वहां पर हुआ क्या है , या हुआ क्या था , दोनों बच्चे रोते – रोते चुप हो गए थे दोनों बच्चों की आंखे बिल्कुल आंसू से लबोलब भरे थे मानो ऐसा प्रतीत हो रहा था की वो उनकी आंखों में ही सुख गए हों आंखे बिलकुल लाल हो गई थी और साथ – साथ सूझ भी गई थी जो की रोने की वजह से हुआ था , मानो ऐसा लग रहा था की वो आंखें कोई ” गुमनाम आंखें ” हों। इन सबसे बड़ा अभिनाश का दर्द उस वक्त यूं भी देखा जा सकता था की एक तरफ़ सुस्मिता की मृत शरीर जो की उनको छोड़ कर उनसे बहुत दूर जाने वाली थी तो वहीं दूसरी तरफ़ मां की ममता और पिता के प्यार को तरसते, रोते बिलखते वो बच्चे जिन्हें देखने की भी हिम्मत अभिनाश के अंदर नहीं बची थी।आज मास्टर साहब , अभिनाश और उन बच्चों की दुनिया उजड़ गई थी जिसे लेखक लिखते हैं कि –

लिख रहा था मैं , वो कलम भी रो रहा था,
गुमनाम आंखें देख , ये मन भी रो रहा था।
उन बच्चों ने तो , अपनी मां को खोया था,
पर, उस मंजर को देख, हर व्यक्ति रो रहा था।

अभय प्रताप सिंह ( फियरलेस )
अभय प्रताप सिंह ( फियरलेस ) रायबरेली

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