किस तरह मैं शाम की बातें लिखूँ अब / रश्मि लहर
किस तरह मैं शाम की बातें लिखूँ अब,
मिट रहे श्मशान की यादें लिखूँ अब।
रो पड़ा फौजी, बिलखते मौन संग,
लाल मेंहदी सी बहीं रातें, लिखूँ अब।
ओढ़ के चूनर, वो शरमाई ही थी,
धुल गए सिंदूर की सांसें लिखूँ अब।
देश पर जाँ दे गया उसका लहू,
मिल सके ना नैन उस माँ से, लिखूँ अब।
हाँथ पहुँचा नभ तलक, मुट्ठी में तारे,
जीत कर हारी हुई घातें लिखूँ अब।
काश! हो ना युद्ध, ना संहार फिर,
देश के नव-रुप को आते लिखूँ अब।
रश्मि लहर
लखनऊ
२.
ज्ञान के दीप हों प्रज्वलित हर घड़ी
चेतना का चतुर्दिशि ही संचार हो
शत्रु का गर बढ़े एक कदम दोस्तों
रोकने को उन्हें हाथ अंगार हो।।
देशहित में लगे हैं जो अविचल जवां
उनका जन-जन करे ऐसा सत्कार हो।
शीश झुकने न देंगे तिरंगे का हम
विश्व भर में जो गूॅंजे , वो जयकार हो।।
रश्मि लहर