Short Poem on Guru Purnima in Hindi | आदर्श शिष्य आरुणि
Short Poem on Guru Purnima in Hindi | आदर्श शिष्य आरुणि
गुरु जी के प्रति शिष्य के भाव- सुमन ।
गुरु वर श्रद्धेय हमें तुमने ,
अपनी छाया में पाला था ।
अपने सुंदर कर-कमलों से ,
कोमल माटी को ढाला था ।
अनघड़ को रूप विचित्र दिया
व्यक्तिव निखारा था तुमने ।
हम थे अबोध अज्ञान भरे ,
गुरुदेव, संवारा था तुमने ।
हम तुम्हें भूल जाएं कैसे ,
क्या कलियां भूली माली को
हम फूल तुम्हारे अपने हैं ,
कैसे छोड़ेंगे डाली को ?
हे विप्र ज्ञान के सूर्य सदा ,
आशीष हमें देते रहना ।
साहस का सम्बल थाम सकें ,
वह मंत्र – बीज देते रहना ।
गुरुदेव तुम्हारे आदर्शो को ,
जीवन में हम ढाल सकें ।
तुम सदा मार्गदर्शक रहना ,
अन्याय-कुपथ को टाल सकें।
हम विनय आपसे करते हैं ,
करना कॄतार्थ मॄदु वचनों से ।
हमसे यदि भूल कोई हुई हो ,
क्षमा करें मॄदु वचनों से ।
हे जीवन-उपवन के माली ,
मेरे जीवन के कुम्भ- कार।
मन-मन्दिर में रहना सदैव ,
मिट जाए गहरा अंधकार ।
आशीष-हस्त सिर पर रखना ,
जीवन – संमार्ग दिखा देना ।
हम आज अधर में लटके हैं ,
गुरुमंत्र कोई बतला देना ।
इस विद्यालय से विदा समय ,
कर-बद्ध प्रार्थना करते हैं ।
संमार्ग दिखाना, यदि भटके ,
गुरुदेव, याचना करते हैं ।
श्रद्धेय , हॄदय में आप रहें ,
बन कर स्नेह की छाप रहें ।
हम लक्ष्य-प्राप्ति में हों सक्षम,
आदर्श पथिक यदि आप रहें।
आदर्श शिष्य आरुणि
एक दिवस महर्षि थौम्य ने ,
शिष्य आरुणि को कहा बुलाए ।
वर्षहि बीच जाओ औ, देखो ,
खेतों में जल भर ना जाए ।।
शिरोधार्य कर गुरु की आज्ञा ,
पहुंचा शिष्य खेत के पास ।
देखा जल बह रहा खेत में ,
कोशिश की कुछ करके आस।
जल के तीव्र वेग से हाय ,
हुआ प्रयास विफल आरुणि का ।
बांधे मेढ – बह जाए माटी ,
लगता था प्रकोप वरुण का ।
लेट गया वह शिष्य उसी क्षण
औंधे मुख मेढ के पास ।
बीत गई यो अर्ध-रात्रि भी ,
प्रातः शांत हुआ जल रास ।
ना लौटा जब शिष्य रात्रि भर,
चिंतातुर गुरु खोजन आए ।
आरुणि-आरुणि वत्स कहां हो ?
कह कर वे चहुं दिशि में धाए।
गुरुदेव, यहां पर हूं मैं ,
इक संकेत से कीन्हां ।
देखा गुरु ने यह दॄष्य ,
स्नेह भर वक्षस्थल लीना ।
प्रिय शिष्य , तुम से हों प्रकाशित ,
वेद की श्रुतियां सभी ।
मेरा शुभ आशीर्वाद है ,
महर्षि बनोगे तुम कभी ।
गुरु की सहर्ष आशीष से ,
आरुणि तभी कॄत कॄत हुआ ।
आगामी जीवन में उद्दालक ,
नाम का महर्षि बना ।।
सीताराम चौहान पथिक
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