Guru Purnima Par Kavita |गुरु पूर्णिमा पर कविता

Guru Purnima Par Kavita – गुरु पूर्णिमा पर कविता

आषाढ़ ऋतु की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता ′को व्यक्त करते हैं यह गुरु-शिष्य परंपरा का पर्व है। विशेष रूप से यह पर्व हिंदू ,बौद्ध ,जैन धर्म के लोग उत्सव के रूप में मनाते हैं। पुराणों के अनुसार इस दिन महर्षि वेदव्यास का भी जन्मदिन था। गुरु ही हमें इस संसार की यात्रा को पार कराने में मदद करते हैं गुरु के बिना मनुष्य का जीवन निरर्थक है। लखनऊ से वरिष्ठ साहित्यकार रश्मि लहर जी ने गुरु की महिमा का वर्णन अपनी रचना के माध्यम से सभी पाठकों के लिए  प्रस्तुत किया है।

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जब मेरे पास होते हैं गुरू

बदल देते हैं जीवन मूल्य,
विस्मृत कर देते हैं बड़ी से बड़ी भूल,
सकारात्मक कर देते हैं मन का हर भाव,
लुप्त हो जाते हैं जीवन के हर अभाव,
जब मेरे पास होते हैं गुरू!

भले अदृश्य होते हैं, पर..
प्रतिपल विचारों को सहेजते हैं,
त्रुटियों का आकलन, वहम का निराकरण,
मृदुल-मौन स्वरों से कर जाते हैं,
बस चुपचाप! साथ देते हैं गुरु!

निराशा की कल-कल नदियोँ को,
हृदय का दम घोटने वाली छवियों को,
छुपा लेते हैं अपने शिख पर,
आशाओं का अनमोल अमृत बाँट देते हैं गुरू!

चुन-चुन कर अवसाद के कंकड़,
सुलभ-सहज कर देते हैं,
भावनाओं का पथ,
विचारों की हो जंग या
पीर हो अपूर्ण रिश्तों की,
अनंत इच्छाओं का भार हो या..
असंतुष्टि हो अतृप्त कामनाओं की,
अवसाद का प्रत्येक कण चुनकर,
संतुष्टि की थाप देते हैं गुरु!

अचरज भरे विस्मय और.
अतुलनीय सुकून के पल,
व्यस्तताओं के मध्य.. हैरान मन की हर हलचल,
शातिं-दूत बनकर, अवरोधों को परे कर,
हर उतार-चढ़ाव की अद्भुत आस होते हैं गुरु!

मेरी एकाकी-टूटन में सदैव मेरे पास होते हैं गुरू..
मेरे हर प्रश्न का जवाब होते हैं गुरू!

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रश्मि लहर
लखनऊ

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