aahaten hindi kavita/आहटें-अरविंद जयसवाल
aahaten hindi kavita : अरविन्द जायसवाल की रचना आहटें हिंदी रचनाकार के पाठको के सामने प्रस्तुत है।
आहटें
शाम जब ढलने लगी,
तब तेरी पायल बजी,
मैंने सोचा ऋतु बसंती,
झूम कर गाने लगी।
इंतजारों की घड़ी,
जोर से बजने लगी,
आहटें सुनकर हृदय में,
हलचलें मचने लगी।
शाम जब ढलने लगी
तब तेरी पायल बजी,
मैंने सोचा ऋतु बसंती,
झूम कर गाने लगी।
बन सुगंधित सी हवा,
तुमने जब मुझको छूआ ,
होश मैं खोने लगा,
कुछ मुझे होने लगा,
मैंने सोचा ऋतु बसंती,
आ मेरे सीने लगी।
शाम जब ढलने लगी
तब तेरी पायल बजी,
मैंने सोचा ऋतु बसंती,
झूम कर गाने लगी।
रात जब ढलने लगी,
अपने घर चलने लगी,
भोर की भी भंगिमा,
अलविदा कहने लगी
मैंने सोचा ऋतु बसंती,
किधर को जाने लगी।
शाम जब ढलने लगी
तब तेरी पायल बजी,
मैंने सोचा ऋतु बसंती,
झूम कर गाने लगी।
भास्कर ने यूँ कहा,
होश में अरविंद आ,
समय रुकता है नहीं,
किरण समझाने लगी,
मैंने सोचा ऋतु बसंती,
छोड़ कर जाने लगी ।
शाम जब ढलने लगी
तब तेरी पायल बजी,
मैंने सोचा ऋतु बसंती,
झूम कर गाने लगी।
अरविंद जयसवाल
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