sindoor par kavita/ सिन्दूर-वेदिका श्रीवास्तव

sindoor par kavita :  हिंदीरचनाकार  के  माध्यम  से  पहली  बार  अपनी  रचना  की  शुरुआत  कर  रही  है  जौनपुर  से  प्रतिभाशाली   लेखिका   वेदिका  श्रीवास्तव  ने  सिन्दूर  पर  कविता  लिखी  हिंदुस्तान  की नारी  के लिए  सिन्दूर  शान  होता  है   इस  सिन्दूर  के  लिए  यमराज  से  भीड़ने  के  लिए  तैयार  रहती  है  पुराणिक  कथाओं  में  इसका  वर्णन  भी  है  प्रस्तुत  है  रचना 

 

सिन्दूर 


सुहागिन के मस्तक का

यही तो शान होता है,
ये सिन्दूर तो सुहागिन का

अमिट अभिमान होता है!

सजाती है,

लगाती है जो नारी मांग  मे अपने,
कोई वस्तु नही वो तो

पति का जान होता है!
सुहागिन के मस्तक का

यही तो शान होता है,

ये सिन्दूर तो सुहागिन का

अमिट अभिमान होता है!

 

चुटकियो मे नही मिलता

ये चुटकी भर सिन्दूर,
बडा ही तेज है इसमे,

हुए यमराज भी मजबूर,
सती का मान होता है,

सती का शान होता है!
सुहागिन के मस्तक का

यही तो शान होता है,

ये सिन्दूर तो सुहागिन का

अमिट अभिमान होता है!

बडा आसान है करना

किसी से प्यार इस जग मे,
सजा दे मांग जो इससे,

नही हर शख्स के वश मे,
पडे जिस हाथ से ‘वेदि’ वो

फिर भगवान होता है!
सुहागिन के मस्तक का

यही तो शान होता है,

ये सिन्दूर तो सुहागिन का

अमिट अभिमान होता है

जानकी को जनक से

ये पराया भी है कर देता,
निभाता सातो जनम तक साथ,

जो ये सिन्दूर भर देता,
ना मांगो इसकी कीमत

तुम मेरे भारत के परिवारो,
प्रभु  वरदान मे दे जो,

वो ‘सिन्दूर दान’ होता है!

सुहागिन के मस्तक का

यही तो शान होता है,

ये सिन्दूर तो सुहागिन का

अमिट अभिमान होता है!

sindoor- par-kavita

वेदिका श्रीवास्तव

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