बृजेंद्र गति छंद | प्रभु राम – बाबा कल्पनेश
बृजेंद्र गति छंद | प्रभु राम – बाबा कल्पनेश
बृजेंद्र गति छंद
पाथेय से हर रोग टूटे
खोना नहीं,तुम धैर्य साथी,साधना करना।
पाथेय से,हर रोग टूटे,मत कभी डरना।।
उस ईश की,महिमा बड़ी है,पूजते रहना।
निज कर्म पथ,पर पाँव धर कर,क्लेश सब सहना।।
वह देखता,सब को सदा ही,कष्ट सब हरता।
नित अन्न दे,जल दे सभी का,पेट है भरता।।
विश्वास को,तजना नहीं बस,नीर दृग भरना।
खोना नहीं,तुम धैर्य साथी,साधनाक करना।।
यदि भय रहित,रहना तुम्हे तो,ज्ञान धारण हो।
प्रातः जगो,गुरुदेव का ही,प्रेम पारण हो।।
आचार दे,व्यवहार का वे,साधना पथ दें।
आनंद दें,तम तोम काटें,ईश का अथ दें।।
लेकर तुम्हे,वह वस्तु केवल,निज हृदय धरना।
खोना नहीं,तुम धैर्य साथी,साधना करना।।
संसार है,म्रियमाण पूरा,एक हरि भजना।
इसमें नहीं,कुछ सार पाना,बस तुम्हे तजना।।
रहना यहाँ,दिन चार केवल,पुष्प सा खिलना।
निज गंध से,महका धरा को,धूल फिर मिलना।।
गुरु ज्ञान है,ले शीश अपने,भव नदी तरना।
खोना नहीं,तुम धैर्य साथी,साधना करना।।
प्रभु राम
आराध्य हो,प्रभु राम मेरे,नित हृदय रहना।
यह प्रार्थना,गुण-दोष जितने,सब तुम्हे सहना।।
यह जीव है,लघुता छिपाए,इस जगत फिरता।
कारण यही,नित संकटों से,है सदा घिरता।।
यह संत सम,निज रूप धर कर,घूमता रहता।
धिक्कार है,प्रभुता न जाने,क्लेश है सहता।।
आया शरण,रख लीजिए अब,निज बना गहना।
आराध्य हो,प्रभु राम मेरे,नित हृदय रहना।।
पत्थर बनी,जब वह अहिल्या,आप ही रज दे।
करता रुदन,जब आज यह है,कौन धीरज दे।।
अब वेश की,महिमा बचे प्रभु,अंक निज भर लें।
देखें इसे,करुणा दृगों से,हाथ से धर लें।।
संसार के,इस धार में नित,देख लें बहना।
आराध्य हो,प्रभु राम मेरे,नित हृदय रहना।।
श्रृद्धा रहे,उर में विराजी,प्रेम मूरत हो।
प्रभु राम हो,नित धनुर्धारी,भव्य सूरत हो।।
हनुमान के,बल बुद्धि दाता,आप की जय हो।
स्वामी-सखा;वरदान दे दें,प्राण निर्भय हो।।
बस हाँ कहें,निज चक्षु देखें,और क्या कहना।
आराध्य हो,प्रभु राम मेरे,नित हृदय रहना।।
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