Kundaliya chhand | मानव | बाबा कल्पनेश
Kundaliya chhand | मानव | बाबा कल्पनेश
विधा-कुण्डलिया छंद
मानव
पढ़ना मानव का चरित,कहना तभी महान।
संत-शास्त्र सबने किया,जिसका बड़ा बखान।।
जिसका बड़ा बखान,स्वयं मानव है करता।
जड़-चेतन जग जीव,प्राण सब का यह हरता।।
प्रेरित हो निज स्वार्थ,नहीं कोई छवि गढ़ना।
कहना तभी विशेष,प्रथम तुमको है पढ़ना।।
थाती अनुपम ईश की,मानव की यह देह।
माया में पर मुग्ध हो,कहाँ कर सका स्नेह।।
कहाँ कर सका स्नेह,कामना के मग भूला।
बँधा काम्य के डोर,हुआ लूलों में लूला।।
लिखती कलम सखेद,मनुज गुण हंता गाती।
नष्ट किये क्यों हाय,ईश की अनुपम थाती।।
मानव जग में श्रेष्ठ है,करे मनुज ही गान।
जिस तरुतल बैठा लिखूँ,मुझको लगे महान।।
मुझको लगे महान,सभी को देते छाया।
करते नहीं विभेद,छाँव में जो भी आया।।
अकसर होता ज्ञान,मनुज जब बनता दानव।
जड़-चेतन हर जीव,काँप जाते लख मानव।।
जग में जितने जीव हरि,रच कर किये प्रवेश।
परम विवेकी मनुज पर,देता इनको क्लेश।।
देता इनको क्लेश,भूल जाता उत्तमता।
घट जाता तब मूल्य,क्षरित हो जाती क्षमता।।
अहंकार वश भूल,पतित हो जाता मग में।
करे प्रकृति तब क्रोध,मनुज दुख पाता मग में।।
उत्तम मानव देह यह,विधि की रचना जान।
मानवता की जय रहे,कविता करती गान।।
कविता करती गान,यही मन मोहक रचना।
तजना पर अज्ञान,नित्य दुर्गुण से बचना।।
यही विधा यह नेक,भावना भरा अनुत्तम।
तज सारे संकोच,कलम तब कहती उत्तम।।
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