hindi kavita vidhaata kee rachana aur khoj /प्रेमलता शर्मा

१.विधाता की रचना

(hindi kavita vidhaata kee rachana aur khoj)


कर मनुष्य की रचना विधाता
स्वयं भरमाया है
यह क्या गलती हो गई मुझसे
मैंने क्या कर डाला है
इससे तो है पशु भले
जो हिल मिल कर रहते हैं
यह मनुष्य तो एक दूसरे को ही डसते हैं
ना ही इनमें संतोष है ना ही सहनशीलता
ना ही इनमें शर्म हया है
ना ही धैर्यशीलता
ना ही  इनमें है कर्तव्य बोधता
ना ही इनमें है ज्ञान
इससे अच्छी तो माटी की मूरत जिनकी एक पहचान
विधाता इनके कर्म देखकर
स्वयं लज्जित हो जाता है
आह मनुष्य की रचना कर मैंने
बड़ा अनर्थ कर डाला है


२.खोज


पत्थर में भगवान छिपा है पुकार सच्ची चाहिए
रात में ही दिन छुपा है इंतजार बस चाहिए
परिश्रम में ही सफलता छुपी है
लगन ही सच्ची चाहिए
धूप में ही छांव छिपी है
परिवर्तन ही बस चाहिए
दुख ही में सुख छिपा है
धैर्य की बस चाहिए
कर्म में ही भाग्य छिपा है
कर्तव्य निश्चल चाहिए
राह में मंजिल छुपी है
इरादे दृढ़ चाहिए
इस संसार में हर कुछ छुपा है
लक्ष्य होना चाहिए

hindi-kavita-premlata-sharma
प्रेमलता शर्मा

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