saty kee jeet hindi kavita/डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

सत्य की जीत

(saty kee jeet hindi kavita)


अंधकार के गर्भ से
जन्मता है प्रकाश
जन्मता है सत्य भी वैसे ही
झूठ के गर्भ से
चाहे जितनी कोशिश की जाय
कि सत्य को रौंद
दिया जाय झूठ के गर्भ में ही
लेकिन नहीं गर्भपात हो पाता है
इसीलिए
नहीं छुपा सकती
निशा बहुत समय तक
सत्य के सूर्य को
यामिनी के वक्ष
को चीरकर निकलता है वह तो
खूब निकलता है
और अपनी प्रखर
अर्चियों की भागीरथी
में पूरी कायनात
को नहलाता है
हां कांटों से भरा
होता है यह पथ
बहुत मुश्किल होता है
इस पर चलना भी
पड़ जाते हैं छाले
बहुत रुकावटें आती है
एकाध कोई
सहयात्री ही साथ
देता है इस
कंटकाकीर्ण मार्ग पर
बाकी तो पलायित हो जाते हैं
पहचान इसी में
होती है अपने और परायों की
लेकिन वह आदमी ही क्या
जो अंधकार के जल
का आचमन करे
और सफलता की इमारत
पर कंगूरा बन
कर बैठे बिना जद्दोजहद के ही
धिक्कारती रहती आत्मा
उसकी पल- पल
अहंकारी रावण को
मजबूर कर दिया
घुटने टेकने पर
एक निरीह पक्षीराज ने
हालांकि वह मारा गया
प्राप्त हो गया वीरगति को
लेकिन मौत भी उसकी
बड़ी हो गई ज़िंदगी से

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डॉ. सम्पूर्णान्द मिश्र

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