मुझे जीना है | अरदास | रश्मि लहर

मुझे जीना है | अरदास | रश्मि लहर

‘मुझे जीना है’

मुझे पता है..
छूट जाना है ये जग!
पक्षियों की गुंजित सी
ये खिलखिलाहट
ये इंतजार करते पथ!
नेह सहेजते पथिक..
स्वप्न दिखाते श्रमिक
किसानों के..
आसमान ताकते पल..
राजनैतिक उथल-पुथल..
अपनों के उजाले भरे छल!
पर मुझे ये भी है पता..
कि मुझे जीना है सदा
बन कर एक प्रेरणा,
रहना है..
जीवित धरा पर..
कुछ लोगों के अधरों पर,
स्मृतियों सा सजना है..
ध्रुव-तारे की तरह देना है
साथ उनका..
जिन्होंने सदैव प्रकाशित की हैं मेरी राहें,
जलाए रखना है,
यादों की आशाओं से चिराग़ उनका!

‘अरदास’

सुलगते हैं सपने नयन ताकते हैं
वो आशा संजोए कदम साधते हैं।।

उठा है भरोसा, ना वादा न किस्सा
सजा लें फिर अपनी धरा मांगते हैं।।

बुझा दे ना ऑंधी, ये साँसों के दीपक,
इसी कशमकश में दीए हाँफते हैं।।

ये कमसिन हवा भी, ना छू जाए उनको,
इसी डर से पत्ते कली ढाँपते हैं ।।

हैं वीरां शहर ये, ना मिलना- बिछड़ना,
उम्मीदों से अपनी उमर मांगते हैं।।

ये नीड़ों की टूटन, ना दिख जाए उनको,
यही सोच पंछी ना घर झाँकते हैं।।

ना हो खत्म जीवन ना रिश्ते, ना अपने,
ये करबद्ध हो कर दुआ मांगते हैं।

वो अपने ही विष का, असर आज समझे,
जो तब सो रहे थे, वो अब जागते हैं।।

कदम उनके छोटे, औ सपने तो मृग हैं,
तो क्यों उनके पीछे सदा भागते हैं।।

समंदर भी छोटा, लगा था जिन्हें कल,
वो डर-डर के इक-इक ‘लहर’ नापते हैं।।

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