श्रवण कुमार पांडेय पथिक का रचना संसार

श्रवण कुमार पांडेय पथिक का रचना संसार

सरेआम बाला को छेडा

सरेआम बाला को छेडा,
सिर जूतों की रेल चली,
कभी गाल कभी सिर सहलाएं,
मार खा रहे हैं दिलफेंक अली,,,,।
दिल फेंक अली,दिल फेंक अली,,,,,।।

इश्की तोते पड़ गए ठंढे,
जमकर बरसे जूते डंडे,
सिर पर बना हुआ चौराहा,
उंगली फेर रहे दिलफेंक अली,,,,।
दिलफेंक अली,दिल फेंक अली,,,,।।

दैय्या दैय्या पुकार रहे हैं,
अपने पुरखे तार रहे हैं,
अरे बाप रे मर गए साहब,
रिरियाते बोले दिलफेंक अली,,,,
दिलफेंक अली,,दिलफेंक अली,,,,।।

कांप रहे पीपलदल जैसे,
नही हैं आशिक़ ऐसे वैसे,
भीड़ देखने लगी पहुंचने
मुंह ढांप रहे दिल फेंक अली,,,।
दिलफेंक अली,,दिलफेंक अली,,,,।।

सिफारिश काम न आई,
ले देकर ही जान छुड़ाई,
आमां हल्दी लगी बदन में,
बॉडी सेंकें दिलफेंक अली,,,।
दिल फेंक अली,दिल फेंक अली,,,।

नही निकल रहे अब घर से,
इश्कभूत उतर गया सिर से,
छिली हुई भौहों की शोभा,
आईने में देखें दिल फेंक अली,,।,
दिल फेंक अली,दिल फेंक अली,,,,।।

आदतन आशिक़ रहा

आदतन आशिक़ रहा ख़िलाफ़ हवा का,
विपरीत चलने का भी मजा लिया करता हूँ,,,।

फिक्र नही कमअक्ल लोगो के रूठने की,
जख्म उधड़ते हैं,तो उन्हें सी लिया करता हूँ,,,।

बचपन के खिलाफ,चलकर ही युवा हुआ,
बुजुर्ग होकर अतीत हुई उम्र जिया करता हूँ,,,।

जिंदगी के सफ़र में जिसने जो भी दिया है,
लोग कहते हैं तो खामोश सुन लिया करता हूँ,,,।

लोगों की दुआ,बददुआ का ही मिश्रण हूँ,
यादों के आईने में ताक झांक किया करता हूँ,,,।

लोगों को मुझसे ढेर सारी शिकायतें रहती,
मैं इन्हें लफद्दर मानकर फेंक दिया करता हूँ,,,।

शिकायती लंतरानियां कभी पचाता नहीं ,
उनको बलगम की तरह थूंक दिया करता हूँ,,,।

लोगों को मुझसे समस्या,उनकी समस्या है,
अलग ढंग का हूँ,अपने ढंग से जिया करता हूँ,,,।

यह सब तमाशा है

यह सब तमाशा है माथे की लकीरों का,
शिकार खुद बखुद आशिक है तीरों का,

गाल अपने बेहिसाब बजाओ जब चाहो,
क्या करोगे मियां पीतल के मन्जीरों का,

बेअक्ल न हों ,गली गली उस्ताद हाजिर ,
सिला देंगें लाबादा ओढ़ने को नजीरों का,

जूतियां गिन रहे हैं ,बड़े अदब से शागिर्द,
बहुत ही ऊंचा रुतबा है कुछ फकीरों का,

कौड़ियां गिनने की जिनमें तमीज नही है,
भाव ताव किया करते हैं,जनाब हीरों का,

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