सरकारी उदासीनता, बढ़ता भ्रष्टाचार | Sarkari Udaaseenata, Badhata Bhrashtaachaar

सरकारी उदासीनता, बढ़ता भ्रष्टाचार | Sarkari Udaaseenata, Badhata Bhrashtaachaar

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सरकारी उदासीनता, बढ़ता भ्रष्टाचार ।

पछत्तर वर्ष स्वाधीनता, मिटा ना भ्रष्टाचार ।
इकडम तिकड़म लगा के, करते बंटाधार  ।।

अकथ गरीबी देश में, जिसका आर न पार ।
फिर भी भारत विश्व में, सप्त स्थान पर यार ।।

स्वयं विचारों किस तरह, मुट्ठी भर कुछ लोग ।
राष्ट्र- सम्पदा दोह रहे, मरते भूखे लोग ।।

काला हांडी  उड़ीसा, अस्पताल की बात ।
दाना मांझी  श्रमिक इक, पत्नी मॄत क्षय- घात ।।

अधिकारी मांगे  मुफ्त में, शव – वाहन के दाम ।
पास नहीं कौड़ी बची, कैसे जाएं ग्राम ।।

कान पकड़ विनती करी, नहीं पसीजे लोग ।
कांधे  पत्नी शव धरा, मन में भरा वियोग ।।

रोती बिटिया संग  में, दया ना उमड़ी देख ।
कहां गई संवेदना ? मिटी धर्म की रेख ।।

दस किलोमीटर चले तब, मिले मीडिया लोग ।
तुरंत व्यवस्था हो गई, वाहन वित्त सुयोग ।।

सरकारी धन लुट रहा, खाते अफसर लोग ।
योजनाएं जिनके लिए, निर्धन- तम वे लोग ।।

ए सी फाइव स्टार में, श्रमिक हितों की बात ।
यही विरोधाभास है, जन-धन पर आघात ।।

आज उड़ीसा ही नहीं, पिछड़े ग्राम अनेक ।
पशु वत जीवन जी रहे, राम- नाम की टेक ।।

ग्रामीण श्रमिक की दुर्दशा, सहॄदय करो विचार ।
सरकारी उपक्रमों में, इन पर अत्याचार ।।

पिछले वर्षों में सतत, खोया जन- विश्वास ।
कूटनीति को छोड़ दो, जीतो जन- विश्वास ।।

भ्रष्टाचार भू -माफिया , देश- द्रोह अपराध ।
राजनीति में यही सब, बन जाते हैं साध ।।

कर्णधार- अंकुश  कसो, गतिविधियों पर ध्यान ।
भेद- भाव भूलो सभी, पथिक करो कल्याण ।।

नोट: दाना मांझी  की बिटिया ने इसी वर्ष दसवीं की परीक्षा पास की है ।

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सीताराम चौहान पथिक

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