Samay Bada Balavaan – समय बड़ा बलवान / सीताराम चौहान पथिक

Samay Bada Balavaan – समय बड़ा बलवान / सीताराम चौहान पथिक

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समय बड़ा बलवान


समय पीछे छोड़ कर ,
आगे निकल गया ।
चेहरे थे प्यार से भरे ,
उनको निगल गया ।

 

मानव जो दे रहा था ,
समय को चुनौतियां ।
वह मोम से बना था ,
पल मैं पिघल गया ।

 

समय को पहचान मानव ,
अरि नहीं , यह मित्र हैं ।
संकेत को पहचान पगले ,
यह मित्र बड़ा विचित्र है ।

 

जो काम निपटाते नहीं ,
संकेत पाकर समय का ।
पद- घात करता तीव्रतम ,
यह साहसी का मित्र है ।

 

समय प्रबल है जान ले ,
क्यों करता अभिमान?
तेरे पीछे काल है ,
अपने को पहचान ।

 

अहंकार कुछ पलों का ,
पानी का ज्यों बुदबुदा ।
फेर अंधेरी रात है ,
मानव , बन इन्सान । ।

 

कर्म क्षेत्र सम्मुख तेरे ,
हे अर्जुन पहचान।
मति – भ्रम का है चक्रव्यूह ,
इसे चुनौती मान ।।

 

यही चुनौती कल तुझे ,
देगी शुभ संकेत ।
कर्म सुनिश्चित कर पथिक ,
करना शर – संधान ।।

 

समय बड़ा बलवान है ,
मानव – तू पहचान ।

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सीताराम चौहान पथिक

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