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भज ले तू श्री राम / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

भज ले तू श्री राम / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ रचना हिंदी रचनाकार पाठको के समक्ष प्रस्तुत है , रचना में लेखक का सन्देश है जब मनुष्य को जन्म प्राप्त हुआ है तो वह असली लक्ष्य को न भूले , क्या है असली लक्ष्य ईश्वर का भजन है उसी से उसका कल्याण होगा। अगर  मानव  जन्म में ईश्वर का ध्यान नहीं किया तो लोभ मोह में फंसकर मनुष्य जन्म हर समय अवसाद रहेगा , आशा है कि पूरी रचना पढ़ेंगे , रचना को पढ़कर जो सुझाव है वह कमेंट बॉक्स में जरूर बतायेगे।

भज ले तू श्री राम


जन्म दिया,जीवन जिया,
किया न उसको याद ।
लोभ,मोह के भॅवर में,
खूब मिला अवसाद ।1।

क्या करना था क्या किया,
गये लक्ष्य को भूल ।
नव रस के नित भोग का,
शेष भोगना शूल ।2।

अब भी तो तू चेत ले ,
कर खुद को निष्काम।
नित ‘हरीश’ पूरण करें,
तेरे बिगड़े काम ।3।

क्षिति,जल,अम्बर देख ले,
सहज प्रकृति -उल्लास ।
निज अन्तर तू देख तो ,
बिखरा नवल प्रकाश ।4।

जाग,जाग अब जाग तू,
बहुत हुआ विश्राम ।
निविड़ तमस छॅट जाएगा,
भज ले तू श्री राम ।5।


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हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली (उ प्र) 229010
9415955693,9125908549

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