Prarthana | Hindi Prayer Poem| सीताराम चौहान पथिक

Prarthana | Hindi Prayer Poem| सीताराम चौहान पथिक : प्रस्तुत रचना में लेखक प्रार्थना कर रहे है , ईश्वर से कि देश में राम-राज्य हो अर्थात देश की जनता में छल-कपट की भावना न हो , चरित्र ऊंचा हो , श्रद्धा की भावना हो ,आदि  इन सभी भावों के साथ रचना प्रस्तुत है :-

— प्रार्थना —


भगवान- मेरे देश को ,
नैतिक चरित्र प्रदान कर ।
लुट रहा यह देश मेरा ,
भ्रष्टाचार का निदान कर ।

सत्य की मशाल थाम ,
विश्व का तिमिर हरे,
अज्ञानता के कूप को ,
अध्यात्म – अमॄत से भरें ।

भौतिक प्रगति तो बहुत हुई ,
उससे अधिक नैतिक पतन।
राष्ट्र- भाव भूल गए ,
युवाओं में फैशन- टशन ।

भय- मुक्त अपराधी हुए ,
हत्या – डकैती चरम पर ।
षड्यंत्र खुल कर हो रहे ,
अब आँच आई धर्म पर ।

भूले विवेकानंद राम को ,
मन्दिर में अरुचि आराधना ।
कैसे हॄदय में शान्ति हो ,
भीतर छिपी छल भावना ।

हे ईश- – – लौटा दो मेरे ,
भारत का सुन्दर स्वर्ण युग ।
प्रकटो कल्कि अवतार बन ,
लौट आए भू पर धर्म – युग ।

मन में आशा को संजोय ,
दो नयन पथराने लगे हैं ।
लौट आओ गिरिधारी धनुर्धारी ,
पथिक पग डगमगाने लगे हैं।


. प्रभु शान्ति का वर

प्रभु शान्ति का वर ,
आप मुझको दीजिए ।
व्यग्र    हूं    मैं  आज,
मेरी व्यग्रता हर लीजिए ।।

इच्छाओं का मुझ पर हिमालय ,
मुक्ति कैसे प्राप्त हो ।
हे दया सागर – दया इतनी ,
आप मुझ पर कीजिए ।।

शान्ति कैसे प्राप्त हो ,
शीतल हॄदय कैसे बने ?
मेरे मन- मन्दिर में आकर ,
ज्योति को भर दीजिए ।।

अशांत  है मेरा हॄदय ,
पूजा में मन लगता नहीं ।
मुझ पर कॄपा करके ,
मलिनता हॄदय की हर लीजिए ।।

हॄदय का ज्वालामुखी ,
भीतर ही भीतर सुलगता ।
स्नेह – सागर से शमन ,
मन की तपन हर लीजिए।।

आज भौतिकता- प्रलोभन ,
हर रहा सुख – शान्ति को ।
मेनका  से दूर विश्वामित्र ,
को       कर     दीजिए ।।

मन हो मेरा स्वच्छ गंगा ,
सभी को पावन करुँ 
चरणों में नित बहता रहुं ,
वरदान इतना दीजिए ।।

काॅच हूं  — कंचन  करो ,
विपदा मेरी आकर हरो ।
शरणागतो  के  शरणदाता ,
शरण में ले लीजिए ।।

प्रभु शान्ति का वर – – – ,
आप मुझको दीजिए ।
व्यग्र हूं मैं पथिक ,
मेरी व्यग्रता हर लीजिए ।।

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सीताराम चौहान पथिक

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