दम्पत्ति- संवाद / सीताराम चौहान पथिक
दम्पत्ति- संवाद / सीताराम चौहान पथिक
पत्नी-
मेरे जीवन साथी, मैं दिया और तुम बाती ।
जीवन में भरें प्रकाश, लिखें नव कथा प्रेम की पाती ।।
मैं सीता और तुम राम, मैं राधा तुम घनश्याम ।
अलौकिक प्रेम-कथा जिये, साथी मेरे सुख – धाम ।।
हमारा जीवन है अनमोल, कोकिला-कंठी जैसे बोल ।
हॄदय में प्रेम छलकता है, दिशाएं गूंज रही जय बोल ।।
पति –
सुनो डार्लिंग, कलियुग है यह, त्रेता नहीं, राम कहलाऊं ।
निर्दोष सिया क्या कम पछताई, राम नहीं जो तुम्हें गंवाऊं ।।
छोड़ो संस्कार की बातें, इनसे पेट नहीं भरता है ।
खा लो- पी लो- मौज उडा लो
चार्वाक भी यह कहता है ।।
जीवन मिला जियो जी भर कर, बैठो बाइक नगर घुमाऊं ।
बात तुम्हारी सोचूंगा मैं, जब थोड़ा बूढ़ा हो जाऊं ।।
पत्नी-
डियर, सुनो हमारा जीवन, कोटि- कोटि जन्मों का फल है ।
सत्कर्म किए मैंने और तुमने, संचित पुण्य कर्मों का बल है।
त्रुटियां जो रह गई विगत में, संशोधन का समय मिला है।
मेरे प्राणनाथ कुछ समझो, पारिजात का पुष्प खिला है।।
वॄद्धावस्था आ जाएगी, अशक्त नहीं कुछ कर पाएंगे ।
संस्कार संस्कृति के गहने, पुण्य- लोक में ले जाएंगे ।।
पति –
प्रिय तुमने मेरे जीवन में, कैसा अद्भुत संचार किया है ।
संस्कार संस्कृति नव-रोपण, जीवन का उद्धार किया है ।।
पाश्चात्य संस्कृति के भ्रम में, भारतीयता भूल गया था ।
मूल- भूमि से कट कर मैं तो, बीच अधर में झूल गया था ।।
धन्य हुआ मैं तुमको पाकर, राधा सीता की रीति निभाई ।
सात्विक जीवन अब महकेगा,पथिक सहाई होंगे रघुराई ।।
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