हम और हमारी आजादी / सीताराम चौहान पथिक
हम और हमारी आजादी / सीताराम चौहान पथिक
आज आजादी की शम्मा ,
जल-बुझ रही है दिन ब दिन।
जज्बे आजादी की धुन ,
मिट रही है दिन ब दिन ।।
ऐ खुदा वतने – मोहब्बत ,
आग का शोला बने ।
आज चिंगारी वतन की ,
जल- बुझ रही है दिन ब दिन।
जाग हिन्द के जवान ,
सरहदें बुला रहीं ।
गद्दार ने पहना नकाब ,
बुनियाद को हिला रही ।।
रोज़ के ये बम – धमाके ,
बिछ रहे लाशों के ढेर ।
जख्मी भारत – भारती ,
नम आंख से बुला रही ।।
कौन समझाए इन्हें ॽ
जो फूंकते है अपना घर।
खून अपनों का बहा कर ,
ये ना होते शर्मसर ।।
हैं ये गद्दारे वतन ,
बच्चों को नशे का कर गुलाम
कौम की बुनियाद को ,
बर्बाद करते पत्थर जिगर ।
वक्त है अब सम्हलने का ,
हम है गफलत के शिकार ।
हैं ये कैसे रहनुमा – – ,
दुश्मन को पहनाते हैं हार ।।
हम हजारों बार धोखा ,
खा चुके हैं – – – या खुदा ।
और कितने खून के दरिया ,
बहेंगे – – – आर – पार ।।
क्यों कलेजा चीरते हो ॽ
आज भारत – मां का तुम ।
इस तिरंगे की बदौलत ,
आज हो आजाद तुम ।।
आज दुश्मन दे रहा ,
खुल कर चुनौती देश को ।
बन के बिजली फूंक दो ,
दुश्मन की हर चाल तुम ।।
किसके दम पर देश में ,
बर्बादियों का ये कहर ॽ
थर्म तो कहता नहीं ,
इन्सान में बांटो ज़हर ।।
आज इंसानो की दुनिया में ,
बने – – – – इंसान – बम ।
रहनुमाओ , देश ना बन जाए ,
लाशों का भरम ।।
उन्होंने जंगे – आजादी लड़ी,
कुर्बानियां हंस हंस के दी ।
हम हुए आजाद हमने ,
कुर्सियां लड़ लड़ के ली ।।
हम तो अब इखलाक के ,
मयार से ऐसे गिरे ।
जूते चले, कपड़े फटे ,
हर बात पर रिश्वत चली ।।
जागो विपक्षी रहनुमाओं ,
सरहदों पर ध्यान दो ।
आस्तीनों में छिपे हैं नाग ,
इन पर ध्यान दो ।।
देश होगा यदि सुरक्षित ,
कुर्सियां मिल जाएंगी ।
फिलहाल सरहद से निकलती
चींटियों पर ध्यान दो ।।
जाग नौजवां वतन की ,
आबरू खतरे में है ।
कर्ज़ मां का अब चुकाना ,
खून के कतरे से है ।।
आज दुश्मन हर तरीका
आजमाने पर उतारू ।
अंत कर दो अब पथिक ,
आबरू खतरे में है ।।
शम्मा- मोमबत्ती,
जज़्बये आजादी- राष्ट्र भावना
वलवले- उमंगें , कमसिन- बच्चा , गफलत – सुस्ती
रहनुमा – मार्ग दर्शक , इखलाक – चरित्र , मयार- ऊंचाई ।