महाभुजंगप्रयात | मत्तगयंद / बाबा कल्पनेश
महाभुजंगप्रयात
विधान-24 वर्ण,8 यगण,12,12 वर्णों पर यति
मापनी-122×8
हिलाया-डुलाया कहाँ डोलता है,
लगे ज्यों मरा हो कहाँ बोलता है।
बुरा आप मानें भला आप मानें,
नहीं ये कभी भी सही तोलता है।।
कहानी सुनोगे दबा दाँत लोगे,
कही बात सारी भुलाता चलेगा।
भरी अज्ञता है नहीं मानता है।
स्वयं को छले है तुम्हे भी छलेगा।।
बुराई न देखें भलाई सराहें,
यही मार्ग प्यारा धरें पाँव आगे।
बताया-सुझाया नहीं बात माने,
लगे नींद में है जगाये न जागे।।
कहाँ से चला ये कहाँ जा रहा है,
पता भी नहीं है चला जा रहा है।
नहीं सोचता ये बली काल से है,
हमेशा-हमेशा छला जा रहा है।।
मत्तगयंद
211×7+2 2
राम रसाल रटो रसना तुम,मोह महारिपु नष्ट करेंगे।
पीर हरें निज भक्तन के प्रभु,शाँति सदा उर मांहि भरेंगे।।
कष्ट मिले जिनसे उनको क्षर,पाप पहारन भार हरेंगे।
धारण धीर करो उर भीतर,जीवन संकट आप टरेंगे।।
देव नदी धर ले उर आँचल,पूत-कपूत पुकारत तोका।
त्राहि करे मन त्राहि करे अब,ले निज गोद दुलारहुँ मोका।।
नाचत-गावत हर्ष मनावत,माँ यश गाइ रहा त्रय लोका।
पाप पहार लदा सिर टारत,ले निज गोद विदारत शोका।।
तीर बसे यदि प्यास मिटे नहिं,निंदित आँचल माँ तव होगा।
पूत-कपूत-सपूत कहे कुछ,माँ सब शोक विदारत रोगा।।
हर्ष हुआ तव आँचल पाकर,पूर्व दिनों दुख दारुण भोगा।
गान करूँ तव गान करूँ अब,दे हरि भक्ति करूँ नित योगा।।

गीता कुटीर-स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश
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