pragraj kumbh mahima/बाबा कल्पनेश

pragraj kumbh mahima

प्रयागराज महिमा


आएँ संगम घाट,करें संतों के दर्शन।
निज माथे को टेक,पुलिन का कर लें पर्शन।।
माँ की कृपा अपार,मिले निश्चय यह जानें।
उर में लेकर आप,चदरिया प्रेमिल तानें।।

जिसके जागे भाग,वही इस तट आ पाते।
अपना माथा टेक,क्षेत्र की महिमा गाते।।
नित अक्षयवट वृक्ष, तान कर प्रेमिल छाता।
तीर्थराज का गान,किया करता हर्षाता।।

खोलें पुस्तक प्रेम,पढें जो अक्षर अंकित।
कर लें अपने चित्त, कहे सद्गुरु जो टंकित।
उर अंतर से धार,उमड़ कर फैले जग में।
डूबें प्रेम प्रवाह,मिलें साथी जो मग में।।

एक यही संदेश, यहाँ इस तट से मिलता।
जीव-जीव का हृदय, प्राप्त कर जिससे खिलता।।
कल्पनेश यह गीत, कलम हर्षित हो गाती।
चाहे प्रातः साँझ,जलाए इस तट बाती।।

रहे नित्य इस घाट,ठाठ इसका है भाता।
सारे वेद-पुराण,शास्त्र इसके उद्गाता।।
होता नित-प्रति यज्ञ, किए थे प्रथम विधाता।
युग-युग करता गान,सुयश इसका विख्याता।।

लेटे हनुमत लाल,पाँव दक्षिण निज करके,
आओ करें प्रणाम, हृदय श्रद्धा से भर के।।
माधव रहे विराज,यहाँ द्वादश हैं पूरे।
अपना माथा टेक,बनें सब काम अधूरे।


pragraj- kumbh- mahima

बाबा कल्पनेश

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